हल्द्वानी। अनीता रावत
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता संघ के रविवार हुई विचार मंथन बैठक में राज्य निर्माण के 21 वर्ष बाद भी राज्य आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को न्याय नहीं मिलने की मुखालफत की गई। तय किया गया कि अब राज्य आंदोलनकारी मंच एकजुट होकर शहीदों को न्याय दिलाने को पहल कर अंजाम तक पहुंचाएंगे। सर्वसम्मति से संवैधानिक पैरवी के लिए कोऑर्डिनेटर बनाने के साथ आंदोलनकारियों के समस्त संगठनों को मिलाकर एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया।
राज्य आंदोलन में शहादत देने वाले शहीदों की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। राज्य अतिथि गृह में हुई बैठक में खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर कांड समेत राज्य आंदोलन से जुड़ी घटनाओं को याद किया गया। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता संघ अध्यक्ष रमन कुमार साह ने कहा कि राज्य आंदोलन में कई लोगों की मौत, गैंगरेप की घटनाएं आज भी झकझोर देती हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक दोषी खुलेआम घूम रहे हैं। सचिव जिला बार मुजफ्फरनगर अरुण शर्मा ने कहा उनके क्षेत्र में घटना होने से आज भी वहां के लोग दुखी हैं। वक्ताओं ने खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर में हुए कांड की तुलना जलियांवाला बाग कांड से की। उन्होंने कहा 1994 1 सितंबर, 2 सितंबर, 1 व 2 अक्तूबर, 10 नवंबर प्रदेश में काला दिवस के रूप में दर्ज है। प्रदेश के एकमात्र मुख्यमंत्री खंडूरी ने दोषियों को सजा की पहल की, लेकिन सत्ता परिवर्तन पर वो भी बंद हो गई। यूपी में आज भी आंदोलनकारियों के करीब एक दर्जन मामले लंबित पड़े है। इसमें सशक्त पैरवी की जरूरत है।
बैठक में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता संघ अध्यक्ष रमन कुमार साह के अलावा राज्य आंदोलनकारी सेनानी मोर्चा कोटद्वार अध्यक्ष महेंद्र सिंह रावत, काशीपुर बार एसोसिएशन अध्यक्ष उमेश जोशी, राज्य आंदोलन मंच देहरादून अध्यक्ष जगमोहन नेगी, चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संघ अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह रावत, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष अवतार सिंह रावत, पूर्व सांसद महेंद्र पाल, पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सैयद नदीम खुर्शीद, राज्य आंदोलनकारी राजीव लोचन साह, मोहन पाठक, पुष्कर सिंह मेहता, मुन्नी तिवारी, हेम आर्या समेत तमाम राज्य आंदोलनकारी मौजूद रहे।