नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को लाओस में आयोजित क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि दुनिया को संघर्षों और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के समक्ष चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए बौद्ध सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा जटिल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए संवाद की वकालत की है तथा सीमा विवादों से लेकर व्यापार समझौतों तक की अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के प्रति दृष्टिकोण में इसे अपनाया भी है।
रक्षा मंत्री लाओस की राजधानी विएंतियान में 10 देशों के संगठन आसियान समूह के सम्मेलन में बोल रहे थे। इस सम्मेलन में चीन के रक्षा मंत्री डोंग जून सहित कई देशों के रक्षा मंत्री मौजूद थे। राजनाथ सिंह ने कहा कि दुनिया तेजी से गुटों और खेमों में बंटती जा रही है। जिससे स्थापित व्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है। इसलिए समय आ गया है कि बौद्ध सिद्धांतों को सभी लोग और अधिक गहराई से अपनाएं। रक्षा मंत्रियों की बैठक आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस (एडीएमएम-प्लस) समूह के सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने कहा कि खुली बातचीत विश्वास, समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है। बातचीत की ताकत हमेशा प्रभावी साबित हुई है, इसके ठोस परिणाम सामने आए हैं। हिंद-प्रशांत को लेकर भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिए 10 देशों के आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है। उन्होंने दक्षिण चीन सागर के लिए प्रस्तावित आचार संहिता पर कहा कि भारत ऐसी आचार संहिता देखना चाहेगा, जिससे अलग-अलग देशों के हित पर असर न पड़े। उन्होंने कहा कि कोई भी आचार संहिता पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून,खास तौर पर संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून 1982 के अनुरूप होनी चाहिए। दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता पर राजनाथ सिंह की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को देकते हुए विभिन्न देश इस संबंध में आचार संहिता की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं। चीन इस आचार संहिता का विरोध करता है। दक्षिण चीन सागर हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है। समूचे दक्षिण चीन सागर पर चीन के व्यापक दावों को लेकर दुनियाभर में चिंताएं बढ़ रही हैं। वियतनाम, फिलीपीन और ब्रुनेई सहित क्षेत्र के कई देश भी दक्षिण चीन सागर को लेकर अपने अपने दावे करते हैं। रक्षा मंत्री ने कहा कि हम ऐसे समय में लाओस में मिल रहे हैं जब दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में संघर्ष जारी हैं। लाओस ने लंबे समय से अहिंसा और शांति के बौद्ध सिद्धांतों को आत्मसात किया है। सिंह ने तर्क दिया कि बौद्ध धर्म न केवल लोगों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बल्कि प्रकृति के साथ लोगों के जुड़ाव का भी आदर्श विचार प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि अपने पूरे जीवन में बुद्ध प्रकृति के करीब रहे। वह प्राय: वन और खुली जगहों पर ध्यान करते थे तथा शिक्षा देते रहे। अपनी शिक्षाओं में उन्होंने पृथ्वी के साथ जीवन के जुड़ाव पर जोर दिया। रक्षा मंत्री ने आसियान क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी ‘एशिया की सदी’ है। विशेष रूप से आसियान क्षेत्र हमेशा से आर्थिक रूप से गतिशील रहा है तथा हजारों वर्षों से व्यापार, वाणिज्य और सांस्कृतिक गतिविधियों से भरा रहा है। इस यात्रा के दौरान भारत इस क्षेत्र का एक विश्वसनीय मित्र बना रहा है। सिंह ने रवींद्रनाथ टैगोर के एक कथन का भी उल्लेख किया, जो उन्होंने 1927 में दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा के दौरान कहा था। टैगोर ने कहा था कि मैं हर जगह भारत को देख सकता हूं, फिर भी मैं इसे पहचान नहीं सका। रक्षा मंत्री ने कहा कि यह बयान इस बात का प्रतीक है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध कितने गहरे और व्यापक हैं।