कौन थी रूप कंवर जो हो गई थी सती

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नई दिल्ली, देव कुमार।
राजस्थान के सीकर जिले दिवाराल गांव में 4 सितंबर, 1987 को पति की चित पर सती होने वाली 18 वर्षीय कंवर अचानक देश की सुर्खियां बन गई हैं। 37 साल पहले हुई इस घटना में बुधवार को फैसला आया जिसमें आठ आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया।
देश के चर्चित रूप कंवर सती मामले में अदालत ने आठ आरोपियों को बरी कर दिया। जयपुर की एक विशेष अदालत ने बुधवार को 37 साल पुराने मामले में आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया। बचाव पक्ष के वकील ने यह जानकारी दी। विशेष अदालत ने 2004 में इस मामले में 25 अन्य लोगों को बरी कर दिया था। वहीं चार आरोपी अभी भी फरार हैं, जबकि उनमें से कुछ अन्य आरोपियों की मौत हो चुकी है। रिहा होने वाले आरोपियों में श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र, उदय, नारायण सिंह, भवंर सिंह और दशरथ सिंह हैं। गौरतलब है कि कथित सती घटना 4 सितंबर, 1987 को राजस्थान के सीकर जिले दिवाराल गांव में हुई थी। रूप कंवर ने अपने पति की चिता पर खुद को जिंदा जला लिया था। इस पूरे मामले की जांच की गई तो पता चला था कि रूप कंवर अपनी इच्छा से सती नहीं हुई थी। उस वक्त जांच के बाद पुलिस ने करीब 45 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। राजस्थान के जयपुर की रहने वाली 18 साल की रूप की शादी दिवराला के 24 वर्षीय माल सिंह शेखावत से जनवरी, 1987 में शादी हुई थी। विवाह के सात महीने बाद ही माल सिंह की बीमारी से मौत हो गई। उस वक्त गांव में अफवाह फैल गई कि रूप ने सती होने की इच्छा जताई है। इसके बाद उसके सती होने का महिमामंडन किया जाने लगा। उसे तैयार करके 4 सितंबर, 1987 को पति के साथ चिता में झोंक दिया गया। वहां मौजूद लोगों ने चिता में घी भी डाला था। रिपोर्ट में कहा गया था कि सती होने के दौरान लोगों ने जयकारा भी लगाया था और चिता में कूदने के लिए उकसाया था। इस पूरी घटना के बाद 22 सितंबर, 1988 को सती की तस्वीर के साथ ट्रक पर जुलूस निकाला गया। इसके बाद पुलिस ने सीकर के थोई थाने में मामला दर्ज कर रूप के ससुर समेत गांव के 45 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया था। सभी पर आरोप था कि दिवराला गांव में एकत्रित होकर सती प्रथा का महिमामंडन किया गया। वहीं गांव के लोगों ने रूप को सती मां का नाम देकर मंदिर भी बनवा दिया। वहां पर चुनरी महोत्सव भी किया गया। रूप कंवर की घटना पर देश में काफी विवाद हुआ था। घटना की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरदेव जोशी ने आरोपियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया था। वहीं मामले की सुनवाई में तेजी लाने के लिए लाने के लिए जयपुर में एक विशेष सती निवारण न्यायालय की स्थापना की गई।

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