वाशिंगटन।
तालिबानी लड़ाकों ने महज सात दिनों में हीअफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया। दावा है कि तालिबानियों ने 34 प्रांतीय राजधानियों में से 13 पर नियंत्रण कर लिया है। उनकी सबसे बड़ी कामयाबी हेरात प्रांत पर कब्जा करना है। ऐसे में हालात को देखते हुए अफगान सरकार ने भी तालिबान को फौरन सत्ता में हिस्सेदारी का प्रस्ताव दे दिया। पर तालिबान ने सरकार के इस प्रस्ताव पर अपना पत्ता नहीं खोला है। उधर विश्व भर के करीब 12 देशों ने तालिबान की सत्ता को नकार दिया है। इसमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ के अलावा भारत, चीन, अमेरिका भी शामिल हैं। इन देशों का कहना है कि अफगानिस्तान में बंदूक के बल पर सत्ता कब्जा करनेवाली किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे।
अफगानिस्तान में बढ़ती सुरक्षा स्थिति को नियंत्रित करने के तरीकों पर विचार करने के लिए कतर की मेजबानी में आयोजित एक क्षेत्रीय सम्मेलन के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर यह स्पष्टीकरण दिया है। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका, कतर, चीन, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान, ब्रिटेन, जर्मनी, भारत, नॉर्वे, ताजिकिस्तान, तुर्की और तुर्कमेनिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए। भारतीय विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान- अफगानिस्तान- ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव जे.पी. सिंह ने कतर की राजधानी दोहा में आयोजित इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस सम्मेलन के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा किसबसे पहले अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत पर सहमति व्यक्त की है। सैन्य बल के माध्यम से हथियाई गई किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देने का भी फैसला किया गया है। प्राइस ने कहा कि यह केवल अमेरिका ही नहीं कह रहा है। हमारी आवाज के साथ केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय है, जैसा कि आप आज उभरी आम सहमति में देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि सर्वसम्मति बिल्कुल ही सीधी और सरल बात पर है कि कोई भी ताकत जो बंदूक के बल पर अफगानिस्तान पर नियंत्रण करना चाहता है, उसे मान्यता नहीं दी जाएगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी वैधता नहीं होगी और उसे किसी प्रकार की सहायता नहीं दी जाएगी।