इस्लामाबाद। पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में सैन्य शासन ने फांसी दी थी। अदालत ने कहा कि उनके इस मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने कहा, लाहौर उच्च न्यायालय की ओर से मामले की कार्यवाही और पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की अपील संविधान में निहित निष्पक्ष सुनवाई व उचित प्रक्रिया के मौलिक अधिकार से मेल नहीं खाती। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भुट्टो को सुनाई गई मौत की सजा को बदला नहीं जा सकता था क्योंकि इसकी इजाजत न तो संविधान देता और न ही कानून। इसलिए यह एक फैसले के तौर पर ही देखा जाएगा। उच्चतम न्यायालय इस पर अपनी विस्तार से राय बाद में जारी करेगा।
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने ससुर भुट्टो को दी गई फांसी की सजा के मामले पर दोबारा विचार के लिए 2011 को उच्चतम न्यायालय अपील की थी, जिसके बाद न्यायालय ने यह फैसला सुनाया।