नई दिल्ली। दुनिया मौजूदा समय में मुद्रा के लिए डॉलर पर निर्भर है। 90 फीसदी लेनदेन डॉलर में ही होते हैं। ब्रिक्स देश खुद की मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देना चाहते हैं जिससे डॉलर पर निर्भरता खत्म हो सके। अमेरिकी बाजार एक्सचेंज नैसडैक के अनुसार ब्रिक्स देश डॉलर की बजाए खुद की मुद्रा पर जोर दे रहे हैं। जानकार इस प्रक्रिया को डी-डॉलराइजेशन का नाम दे रहे।
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के अनुसार वर्ष 1999 से 2019 के बीच अंतरराष्ट्ररीय व्यापार में 96 फीसदी डॉलर का प्रयोग होता था। एशिया प्रशांत क्षेत्र में व्यापार के लिए 74 जबकि दुनिया के अन्य भागों में इसका 79 फीसदी इस्तेमाल होता था। ब्रिक्स देश तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। ऐसे में ब्रिक्स मुद्रा से डॉलर की धाक को धक्का जरूर लगेगा। अमेरिकी बाजार एक्सचेंज नैसडैक के अनुसार दुनिया के सभी देश डॉलर का विकल्प तलाश रहे। चीन और रूस अपनी मुद्रा में कारोबार करते हैं। भारत भी कई देशों के साथ अपनी मुद्रा में काम के लिए समझौते कर रहा। केन्या, मलयेशिया समेत कई देश डी-डॉलराइजेशन को बेहतर मान रहे हैं क्योंकि उससे उन्हें आर्थिक रूप से कई तरह के लाभ मिलेंगे।