एम्सटरडैम। इजरायल- हमास जंग में तबाह हो चुके गाजा के बच्चों में जीवन जीने की इच्छा ही खत्म हो गई है। मिसाइल और बम से मची तबाही के बीच 96 फीसदी बच्चे जीना नहीं चाहते या उन्हें अपनी मौत करीब दिखती है। वहीं 49 फीसदी बच्चे चाहते हैं कि उनकी मौत हो जाती तो अच्छा होता। ऐसा सोचने वालों में 72 फीसदी लड़के और 26 फीसदी लड़किया हैं। नीदरलैंड के वॉर चाइल्ड अलायंस और गाजा के एक एनजीओ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में ये भयावह खुलासा हुआ है। वॉर चाइल्ड अलायंस ने 504 बच्चों के अभिभावकों या उनकी देखरेख करने वालों से सवाल-जवाब के जरिए ये जानकारी जुटाई है। इसमें उन परिवारों को शामिल किया गया जिनका एक बच्चा युद्ध में अपंग हो गया या वे अपने परिवार से बिछड़ गया। इसमें पता चला कि सर्वे में शामिल 92 फीसदी बच्चे युद्ध का सच स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। गाजा मिसाइलों से तबाह हो चुका है। वातावरण में बारूद की बदबू है। दुनिया की तनातनी से अनजान बच्चे 14 महीने से जो मंजर देख रहे हैं, उससे उनके मन में सिर्फ डर और भय ने जगह बना ली है। आलम ये है कि 79 फीसदी बच्चे सपने में भी सहम जाते हैं। वहीं 73 फीसदी मासूम इन सबसे इतने आजीज आ चुके हैं कि उनका व्यवहार गुस्सैल हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गाजा में करीब 44 हजार लोगों की मौत हुई है। इसमें 44 फीसदी बच्चे हैं। जो बच्चे जिंदा हैं वे बीमार हैं, तनाव, अनिद्रा, अवसाद और डर ने उनको कैद कर लिया है। मासूमों को हर अनजान शख्स से डर लगता है। 17 हजार बच्चे अपने माता-पिता और परिवार से बिछड़ गए हैं। ऐसे बच्चों के मन के भीतर की हलचल को समझना बेहद कठिन है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गाजा दुनिया की सबसे भयावह जगह है। वॉर चाइल्ड अलायंस, ब्रिटेन की प्रमुख हेलेन पैटिनसन का कहना है कि बच्चों ने अपना घर, स्कूल और अस्पताल मलबे में बदलते देखा है। बच्चों का मन भी इन्हीं भवनों की तरह क्षत-विक्षत हुआ है। मासूमन मन समझ नहीं पा रहा कि उन्हें आखिर किस बात की सजा मिल रही है, उनका गुनाह क्या है। जम्मू- कश्मीर कोलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (जेकेसीसीएस) की 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2003 से 2018 तक कुल 318 बच्चे मारे गए। बच्चों की मौत गोलीबारी, बमबारी और आतंकी हमले समेत अन्य कारणों से हुई। हिंसा का बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव दिखा। इसी तरह हिंसाग्रस्त मणिपुर में भी बच्चों के साथ हुई घटनाओं ने पूरे देश को झकझोरा है।