भरखर में मिली भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति, नारद मोह की कथा का श्रद्धालुओं ने किया रसपान
भभुआ। राजेंद्र तिवारीमोहनिया प्रखंड के भरखर गांव में भक्तों के लिए आयोजित शिव महापुराण में भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति की प्राप्ति हुई। इसी कड़ी में शनिवार को नारद मोह की कथा संपन्न हुई। वृंदावन धाम से आए प्रख्यात कथावाचक प्रेमाचार्य पीताम्बर महाराज ने अपनी ओजस्वी वाणी से नारद मुनि के मोह की कथा का रसपान कराया। उन्होंने कहा कि जब नारद मुनि को अपनी माया में फंसने की गलती का अहसास होता है। वे समझ जाते हैं कि संसार का मोह और अहंकार किसी को नहीं छोड़ता, फिर चाहे वह स्वयं नारद मुनि ही क्यों न हों। जब वे विष्णु भगवान के चरणों में लौटते हैं, तो भगवान मुस्कुराकर कहते हैं- हे नारद, यह सब तुम्हारे अहंकार को मिटाने के लिए था। जब तक यह अहंकार रहेगा, तब तक सत्य का बोध नहीं हो सकता। सच्चा भक्त वही है जो भक्ति करता है, परंतु अपने साधन और शक्ति का घमंड नहीं करता। उन्होंने कहा कि मोह और अहंकार से बचते हुए भक्ति के मार्ग पर अग्रसर रहना ही सच्चा धर्म है। चाहे कोई भी कितना ही बड़ा ज्ञानी, योगी, या भक्त क्यों न हो, ईश्वर की माया से परे नहीं जा सकता। कथावाचक प्रेमाचार्य पीताम्बर महाराज ने भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए नारद मुनि, जो सदैव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे, एक बार अहंकारवश स्वयं को मोह और माया से परे समझ बैठे। वे सोचने लगे कि उनकी भक्ति इतनी प्रबल है कि कोई भी सांसारिक आकर्षण उन्हें प्रभावित नहीं कर सकता। उनकी इसी भावना की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया का अद्भुत जाल रचा। एक दिन नारद मुनि जब एक रमणीय वन में विचरण कर रहे थे, तब उन्होंने एक अद्भुत राजमहल देखा। वहां की राजकुमारी अनुपम सुंदरता की धनी थी, जिसे देखते ही नारद मुनि मोहग्रस्त हो गए। वे उसके रूप-सौंदर्य पर इतने मोहित हो गए कि विवाह करने का संकल्प कर लिया।नारद मुनि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उन्हें ऐसा रूप प्रदान किया जाए कि राजकुमारी उन्हें वरण कर ले। भगवान ने अपनी माया का प्रयोग कर नारद मुनि को वानरमुखी बना दिया, लेकिन नारद मुनि इस रहस्य को समझ नहीं पाए। स्वयं को सबसे सुंदर समझते हुए वे राजमहल पहुंचे, लेकिन राजकुमारी ने उनका अपमान कर किसी अन्य राजा को विवाह के लिए चुन लिया। अपमानित और आहत नारद मुनि जब दर्पण में स्वयं को देखते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उनका चेहरा वानर के समान हो गया है। वे क्रोध से भगवान विष्णु को कोसते हुए कहते हैं कि उन्होंने उनके साथ छल किया है।

गुस्से में आकर नारद मुनि भगवान विष्णु को श्राप देते हैं कि वे भी मानव रूप में जन्म लेंगे और उन्हें भी अपनी प्रिय संगिनी से वियोग सहना पड़ेगा।छह मार्च से भरखर गांव में प्रारंभ हुई शिव महापुराण कथा में शुक्रवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। कथा में भगवान शिव की महिमा, उनकी लीलाओं और मोक्ष प्रदायक स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया। वृंदावन धाम से आए प्रेमाचार्य पीताम्बर महाराज ने भगवान शिव की कथा सुनाते हुए कहा कि शिव केवल संहार के देवता नहीं, बल्कि करुणा, दया और भक्ति के प्रतीक भी हैं।इस भव्य आयोजन की प्रेरणा भूतपूर्व सैनिक नायक सुबेदार मुरलीधर पांडेय ने दी। अपनी गहरी आस्था और शिव भक्ति से प्रेरित होकर उन्होंने अपने सैनिक पुत्र नीरज कुमार पांडेय से इस आयोजन की इच्छा व्यक्त की। पिता की श्रद्धा को पूरा करने के लिए नीरज कुमार पांडेय ने सात दिवसीय इस भव्य कथा आयोजन का संकल्प लिया और पूरी श्रद्धा से इसकी तैयारियां शुरू कीं।धार्मिक और आध्यात्मिक महत्वशिव महापुराण कथा का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता भी प्राप्त हो रही है। इस दौरान श्रद्धालु भगवान शिव की महिमा, उनके आदर्श, भक्ति मार्ग और मोक्ष के महत्व को समझ रहे हैं।भरखर गांव में इस प्रकार का यह पहला भव्य आयोजन है, जिसमें दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इस पावन अवसर पर पूरा क्षेत्र भक्तिमय माहौल से गूंज उठा।