नई दिल्ली| नीलू सिंह
सुप्रीम कोर्ट सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले की समीक्षा करेगा। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को यह फैसला किया।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने वाले संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा, हम इस मामले की जांच कर रहे हैं और इसी वजह से नोटिस जारी कर रहे हैं जिसका चार सप्ताह के अंदर जवाब दिया जाए। लेकिन पीठ ने आरक्षण संबंधी केंद्र के इस फैसले के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई।
इस चुनावी वर्ष में नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ देने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया था। केंद्र सरकार के इस निर्णय को चुनौती देते हुए गैरसरकारी संगठनों ने याचिकाएं दायर की हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण को सामान्य वर्ग तक सीमित नहीं रखा जा सकता। साथ ही 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। इसलिए यह प्रावधान संविधान का उल्लंघन करता है।
कारोबारी तहसीन पूनावाला ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके 10 फीसदी आरक्षण देने संबंधी केंद्र के निर्णय को खारिज करने का आग्रह किया है। पूनावाला ने दलील दी है कि इस संविधान संशोधन से आरक्षण के बारे में इंदिरा साहनी प्रकरण में शीर्ष अदालत के 1992 के फैसले में स्थापित मानदंड का उल्लंघन होता है। उस फैसले में साफ किया गया था कि आरक्षण के लिए पिछड़ेपन को सिर्फ आर्थिक आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता। संविधान पीठ ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की थी और आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान इस सीमा का उल्लंघन करता है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किया गया था। लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमश: 8 और 9 जनवरी को इस विधेयक को पारित किया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इस संविधान संशोधन कानून को लागू करने के बारे अधिसूचना भी जारी कर चुका है।