देहरादून। उत्तराखंड में मलिन बस्तियों को सुरक्षित करने के लिए सुरक्षा कवच बनाने का कैबिनेट ने फैसला किया है। बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में मलिन बस्तियों के सुधार, विनियमितीकरण, पुनर्वासन, पुनर्व्यस्थापन और अतिक्रमण निषेध के लिए उत्तराखंड नगर निकायों एवं प्राधिकरणों के लिए विशेष प्राविधान (संशोधन) अध्यादेश 2024 को मंजूरी दी गई है। एक आंकड़े के अनुसार देहरादून में 162, ऊधमसिंह नगर में 121, हरिद्वार में 122, उत्तरकाशी में 20, चमोली में 21, टिहरी में 13, पौड़ी में 21, पिथौरागढ़ में 21,बागेश्वर में 07,अल्मोड़ा में 09,चंपावत में 10, नैनीताल में 55 मलिन बस्तियां हैं।
उत्तराखंड में मलिन बस्तियों के उजड़ने का संकट एक बार फिर अगले तीन साल के लिए टल गया है। सरकार ने अध्यादेश का कवच पहनाकर मलिन बस्तियों को सुरक्षित कर लिया है। सचिवालय स्थित विश्वकर्मा भवन में हुई कैबिनेट बैठक में 30 फैसलों पर मुहर लगाई गई है। कैबिनेट की जानकारी देते हुए सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि अब अध्यादेश मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा जाएगा। इससे पहले सरकार वर्ष 2018 और इसके बाद वर्ष 2021 में अध्यादेश लेकर आई थी, जिसकी अवधि बुधवार को समाप्त हो गई थी। सरकार ने अध्यादेश लाकर अब इस अवधि को तीन साल आगे बढ़ाते हुए कुल नौ वर्ष कर दिया है। वर्ष 2016 में हाईकोर्ट ने प्रदेश में अवैध रूप से बसी मलिन बस्तियों को अतिक्रमण मानते हुए हटाने के निर्देश दिए थे। तब से लेकर आज तक मलिन बस्तियों का नियमितिकरण तो नहीं हो पाया, लेकिन सरकार बस्तियों के नियमितीकरण के नाम पर बीते छह सालों से अध्यादेश लाकर बस्तियों को टूटने से बचाती रही है। एक सर्वे में मलिन बस्तियों की संख्या 582 पाई गई थी। उत्तराखंड में मलिन बस्तियों की सही स्थिति और अन्य मूलभूत सुविधाओं की जानकारी जुटाने के लिए सरकार एक बार फिर बस्तियों का सर्वे कराने जा रही है। इससे पहले राज्य में 2011 में मलिन बस्तियों का सर्वे हुआ था। अब शहरी विकास विभाग दोबारा सर्वे शुरू करने जा रहा है, ताकि मलिन बस्तियों के नियमितिकरण का भी रास्ता साफ हो सके। हालांकि, वर्ष 2015 में कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण के लिए राजकुमार कमेटी का भी गठन किया था। उत्तराखंड में अब ग्राउंड वॉटर और जल स्रोतों के कमर्शियल, औद्योगिक इस्तेमाल करने वालों को जल मूल्य का भुगतान करना होगा। कैबिनेट ने बुधवार को जल मूल्य वसूलने वाली दरों पर मुहर लगाई। 11 रुपये से लेकर 648 रुपये प्रति किलो लीटर की दर से जल मूल्य की वसूली की जाएगी। राज्य में औद्योगिक इकाइयों और ऐसी प्रोसेस इंडस्ट्री, जहां पानी का इस्तेमाल रॉ मैटेरियल के रूप में उपयोग किया जाता है, उनसे भी जल मूल्य वसूलने का फैसला लिया गया है। कोल्डड्रिंक्स, मिनरल वाटर, बेवरेजेज आदि की दरों का औसत लेते हुए जल मूल्य तय किया गया है। सिर्फ कृषि, सरकारी पेयजल व्यवस्था पर जल मूल्य नहीं लिया जाएगा। हर साल एक अप्रैल से जल मूल्य में 10 प्रतिशत की वृद्धि होगी। उत्तराखंड में 11 नगर निगमों में भी चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। कैबिनेट ने बुधवार को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959) संशोधन अध्यादेश 2024 को मंजूरी दी है। इसकी अवधि एक अक्तूबर को समाप्त हो गई थी। अब इसे मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा जाएगा।