शिव की सेवा ही साधना है : शंकराचार्य

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नई दिल्ली। टीएलआई

भगवान शिव की सेवा ही साधना है और जीवन में शिवपद की प्राप्ति ही साध्य है। वेदोक्त कर्म कर उसे शिव के चरणों में अर्पित करने से ही परमेश्वर की प्राप्ति होती है। उक्त बातें काशी सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने चंपारण में आयोजित नौ कुंडीय श्री अतिरुद्र महायज्ञ में कही।

बिहार के चम्पारण में छपवा में नौ कुण्डीय श्री अतिरूद्र महायज्ञ का आयोजन किया गया है। मंगलवार को महायज्ञ में पहुंचे शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने श्रद्धालुओं को वेद-वेदांत की जानकारी दी। महायज्ञ के धर्म मंच से सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालुओं को साधना और साध्य के बारे में समझाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन मे शिवपद की प्राप्ति ही साध्य है और शिव की सेवा ही साधन है। शिव प्रसाद से जो नित्य-नैमित्तिक फलों की ओर से नि:स्पृह होता है, वही साधक है । उन्होंने कहा कि वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान करके उसके फल को भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर देना ही परमेश्वर पद की प्राप्ति है । परमेश्वर पद को प्राप्त करने का क्रम ही मुक्ति है।

उन्होंने तीन साधनों की व्याख्या करते हुए कहा कि कान से भगवान के नाम-गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी से उनका कीर्तन तथा मन से उनका मनन करना ही साधन हैं । इन साधनों में असमर्थ व्यक्ति भी शिवलिंग और साकार विग्रह की पूजा, उसके रहस्य तथा महत्व को समझकर करे तो वह भी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसमौके पर शंकराचार्य ने कहा कि भगवान शिव ने इसके अलावा अपने स्वरूपभूत मन्त्र का भी उपदेश किया है, जो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। वह मन्त्र है “ॐकार”। यह महामंगलकारी मन्त्र भगवान शिव के स्वरूप का बोध कराने वाला है। ॐकार वाचक है और वाच्य स्वयम् भगवान शिव हैं । भगवान शिव के पाँच मुखों में से उत्तरवर्ती मुख से अकार का, पश्चिम मुख से उकार का, दक्षिण मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से विन्दु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ है । ॐकार के विस्तार में पांचों अवयव युक्त हैं। पांचों अवयवों से एकीभूत होने के कारण ही, यह प्रणव ‘ ॐ’ नामक एक अक्षर हो गया, जो महामंगलकारी है । उन्होंने यह भी बताया कि भगवान शिव अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है, अपनी क्षमतानुसार पूरे भाव एवम् समर्पण से भगवान शिव की उपासना करके मनुष्य अपना सकल मनोरथ सिद्ध कर सकता है। इससे पहले महायज्ञ में पहुंचने पर आयोजकों और श्रद्धालुओं ने काशी सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती का भव्य स्वागत किया।

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