इस्लामाबाद। पाकिस्तान में न्यायाधीशों की शक्तियों और उनके कार्यकाल को सीमित करने की तैयारी की जा रही है। सोमवार को पाक संसद ने विवादास्पद 26वें संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी।
इस विधेयक में मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित करने का प्रावधान है। नेशनल असेंबली ने संशोधन विधेयक को सुबह पांच बजे पारित कर दिया। विधेयक को लेकर विपक्षी दलों का आरोप है कि इसका उद्देश्य स्वतंत्र न्यायपालिका की शक्तियों को कम करना है। 336 सदस्यीय सदन में 225 सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया। सरकार को विधेयक पारित करने के लिए 224 मतों की आवश्यकता थी। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और सुन्नी-इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) ने संशोधन विधेयक का विरोध किया, लेकिन पीटीआई के समर्थन से सीट जीतने वाले छह निर्दलीय सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया। संसद के दोनों सदनों में विधेयक के पारित होने के बाद इसे अब पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद-75 के तहत राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और उनके हस्ताक्षर के बाद यह कानून लागू हो जाएगा। इस विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए एक विशेष आयोग का गठन करने समेत कई संवैधानिक संशोधन शामिल हैं। इस संशोधन से अब वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर स्वतः पदोन्नति पर रोक लग गई है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि पूरी कवायद का उद्देश्य न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह की नियुक्ति को रोकना है, ताकि 25 अक्तूबर को वर्तमान मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा की सेवानिवृत्ति पर वे मुख्य न्यायाधीश नहीं बन सकें।