वाराणसी। गंगा के तट पर बसी वाराणसी में आज जल दिवस पर कई जगहों पर आयोजित विशेष कार्यक्रमों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। पीएमश्री केंद्रीय विद्यालय, 39 जीटीसी में अंतरराष्ट्रीय जल दिवस के अवसर पर जल संरक्षण का संदेश जोर-शोर से गूंजा। विद्यालय के प्राचार्य डॉ. चंद्र भूषण प्रकाश वर्मा ने न केवल शिक्षकों को जल संरक्षण के प्रति प्रेरित किया, बल्कि बच्चों और समाज के हर वर्ग को इस दिशा में जागरूक करने का आह्वान भी किया। जल है तो कल है का नारा देते हुए उन्होंने सभी शिक्षकों को जल संरक्षण की शपथ दिलाई और इस संसाधन के महत्व को रेखांकित किया। यह आयोजन जल संरक्षण के प्रति एक सामूहिक संकल्प का प्रतीक बन गया।
केंद्रीय विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में जल दिवस को उत्सव के रूप में मनाया गया। प्राचार्य डॉ. वर्मा ने अपने संबोधन में कहा, पानी जीवन का आधार है। यह केवल हमारी प्यास बुझाने का साधन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण का मूल है। हमें इसे संरक्षित करना होगा, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इसका लाभ उठा सकें।” उनके इस संदेश ने शिक्षकों और छात्रों में एक नई ऊर्जा का संचार किया।

कार्यक्रम में जल संरक्षण पर आधारित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया गया। छात्रों ने पोस्टर बनाए, निबंध लेखन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और जल संरक्षण पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया। शिक्षकों ने भी इस अवसर पर अपने विचार साझा किए और जल संरक्षण के लिए व्यावहारिक उपायों पर चर्चा की। यह आयोजन केवल औपचारिकता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक सामाजिक जागरूकता अभियान का रूप ले लिया।
डॉ. वर्मा ने भूजल स्तर में आई कमी की ओर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि हम गंगा के किनारे रहते हैं, फिर भी हमें पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। यह विडंबना नहीं, बल्कि हमारी लापरवाही का परिणाम है। हमें भूजल को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।” उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बच्चों को बारिश के पानी को संग्रह करने, पानी की बर्बादी रोकने और पेड़-पौधों की देखभाल करने जैसे व्यावहारिक उपायों के बारे में बताएं। हाल के एक अध्ययन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वाराणसी में भूजल स्तर पिछले 20 वर्षों में औसतन 10-15 मीटर तक नीचे चला गया है। इसका मुख्य कारण शहर में पानी की मांग बढ़ रही है, लेकिन रिचार्ज होने की प्रक्रिया धीमी हो गई है। अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले दशक में वाराणसी को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।” इस संदर्भ में जल दिवस का यह आयोजन और भी प्रासंगिक हो जाता है।
कार्यक्रम का सबसे प्रभावशाली क्षण तब आया जब प्राचार्य ने सभी शिक्षकों को जल संरक्षण की शपथ दिलाई। शपथ में शामिल वाक्य जैसे मैं जल की हर बूंद को बचाने का प्रयास करूंगा”, मैं पानी का दुरुपयोग नहीं करूंगा”, और मैं दूसरों को भी जल संरक्षण के लिए प्रेरित करूंगा” ने सभी के मन में एक गहरी छाप छोड़ी। यह शपथ न केवल एक औपचारिकता थी, बल्कि एक संकल्प थी जो हर व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में जल संरक्षण के प्रति जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित कर रही थी। उन्होंने कहा कि आप हमारे देश का भविष्य हैं। अगर आप आज से ही पानी बचाने का संकल्प लेंगे, तो हमारा कल सुरक्षित होगा। अपने घरों में, अपने दोस्तों के बीच, और अपने आसपास के लोगों को बताएं कि पानी कितना कीमती है। उनकी यह अपील बच्चों में उत्साह और जिम्मेदारी का भाव जगा रही थी। कार्यक्रम के दौरान जल संरक्षण के कई व्यावहारिक उपायों पर भी चर्चा हुई। शिक्षकों ने सुझाव दिया कि स्कूल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित किया जाए, जिससे बारिश के पानी को संग्रह कर भूजल स्तर को बढ़ाया जा सके। इसके अलावा, पानी की बर्बादी रोकने के लिए नल और टैंकों की नियमित जांच, पौधों को पानी देने के लिए ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल, और घरों में पानी के पुनर्चक्रण जैसे उपायों पर जोर दिया गया। एक शिक्षक ने कहा कि हमें बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि नहाते समय बाल्टी का इस्तेमाल करें, न कि शावर का। छोटी-छोटी बातें बड़े बदलाव ला सकती हैं। इस तरह की सकारात्मक पहल ने आयोजन को और प्रभावी बनाया। प्राचार्य डॉ. चंद्र भूषण प्रकाश वर्मा ने सभी से अपील की कि जल संरक्षण हमारा कर्तव्य है। यह नारा नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी है। आइए, हम सब मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएं।
केंदीय विद्यालय के अलावा कई स्कूलों में भी इसका आयोजन किया गया। वहां वक्ताओं ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय जल दिवस हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विश्व भर में पानी की महत्ता और इसके संरक्षण की आवश्यकता को उजागर करना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू की गई इस पहल का मकसद लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करना है। इस वर्ष की थीम “जल और शांति” रही, जो जल संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ इसके समान वितरण और इससे जुड़े संघर्षों को कम करने पर केंद्रित थी।
एक अन्य कार्यक्रम में बताया गया कि वाराणसी, जो गंगा नदी के किनारे बसा है, पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में भूजल स्तर में लगातार गिरावट ने इस शहर के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। विशेषज्ञों के अनुसार, अंधाधुंध भूजल दोहन, औद्योगिक गतिविधियां, और शहरीकरण के कारण वाराणसी में भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। गंगा नदी के प्रदूषण ने भी स्थिति को और जटिल बना दिया है, क्योंकि नदी का पानी अब कई क्षेत्रों में पीने योग्य नहीं रहा।