देहरादून। राज्य सरकार ने भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड में आयुर्वेद डॉक्टर के रूप में पंजीकृत आयुर्वेद डिप्लोमाधारियों का पंजीकरण रद्द करने के आदेश कर दिए हैं। सरकार के इस फैसले से राज्य में डॉक्टर के रूप में पंजीकृत 500 के करीब आयुर्वेद डिप्लोमाधारियों का रजिस्ट्रेशन रद हो जाएगा और इसके बाद वे मरीजों का इलाज नहीं कर सकेंगे।
दरअसल, भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड ने पिछले कुछ सालों में ऐसे आयुर्वेद के डिप्लोमाधारियों को डॉक्टर के रूप में पंजीकृत कर दिया था, जिन्होंने यूपी सहित देश के विभिन्न राज्यों के बिना मान्यता प्राप्त कॉलेजों से कोर्स किया है। यूपी के समय के कुछ डिप्लोमाधारियों को आधार बनाकर सरकार के एक पुराने शासनादेश के तहत ऐसा किया गया, लेकिन राज्य के कई डॉक्टर परिषद के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। साथ ही कई डॉक्टरों ने आयुर्वेद की केंद्रीय परिषद में भी इस मामले की शिकायत की। इस पर आयुर्वेद की केंद्रीय परिषद ने राज्य के आयुष सचिव को पत्र लिखकर तत्काल 2019 में जारी हुए शासनादेश को रद करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद अब अपर सचिव आयुष डॉ. विजय कुमार जोगदंडे की ओर से इस संदर्भ में आदेश किए गए हैं। सरकार की ओर से डॉक्टरों के पंजीकरण रद्द करने के फैसले के बाद अब भारतीय चिकित्सा परिषद 500 के करीब डॉक्टरों के पंजीकरण रद्द करने के आदेश जारी करेगी। उसके बाद आयुर्वेद डॉक्टर के रूप में पंजीकृत ऐसे सभी डिप्लोमाधारी मरीजों का इलाज नहीं कर सकेंगे और ऐसा करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। भारतीय चिकित्सा परिषद में इससे पहले भी आयुर्वेद के फर्जी डॉक्टरों का मामला प्रकाश में आ चुका है। चिकित्सा परिषद में मिलीभगत के जरिए बड़ी संख्या में फर्जी डिग्री के आधार पर डॉक्टरों का पंजीकरण कर दिया गया था। इस मामले में एसआईटी जांच चल रही है और अभी तक 36 फर्जी डॉक्टर पकड़े भी जा चुके हैं।
भारतीय चिकित्सा परिषद के रजिस्ट्रार नर्वदा गुसाईं ने कहा कि चिकित्सा परिषद में डिप्लोमाधारियों का पंजीकरण सरकार के 2019 के एक शासनादेश के अनुसार हुआ था। अब सरकार ने शासनादेश निरस्त कर दिया है तो ऐसे सभी डॉक्टरों के पंजीकरण रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जल्द ही डॉक्टरों के पंजीकरण रद्द कर इलाज पर रोक लग जाएगी।