लाहौर। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के पांच और नवनिर्वाचित निर्दलीय सांसदों ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएन-एल में शामिल होने का फैसला किया।
इससे एक दिन पहले इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी समर्थित निर्दलीय सांसद ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) का दामन थाम लिया था। कुल छह निर्दलीय सांसद पीएमएल-एन में शामिल हो चुके हैं। पीएमएल-एन के अध्यक्ष शहबाज शरीफ ने सोमवार को सोशल मीडिया पोस्ट कर कहा कि एनए-189 सीट से सांसद सरदार शमशीर मजारी, पीपी-195 से निर्वाचित इमरान अकरम, पीपी-240 से निर्वाचित सोहेल खान, पीपी-297 के सांसद खिज्र हुसैन मजारी और पीपी-249 से नेशनल असेंबली के सदस्य साहिबजादा मोहम्मद गाजिन अब्बासी ने नवाज शरीफ के नेतृत्व में विश्वास जताया और पीएमएल (एन) में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की। पाकिस्तान के हालिया आम चुनाव में खारिज किए गए वोटों की संख्या कम से कम 24 नेशनल असेंबली निर्वाचन क्षेत्रों में जीत के अंतर से अधिक थी। आम चुनाव के एक दिलचस्प सांख्यिकीय आंकड़े में यह जानकारी सामने आई है। यह अंतर संभावित रूप से कानूनी लड़ाई के द्वार खोलता है क्योंकि कई हारने वाले उम्मीदवारों ने चुनाव परिणामों की समीक्षा के लिए अदालतों में याचिकाएं दायर की हैं। पाक मीडिया के अनुसार, जीत के अंतर से अधिक संख्या में अस्वीकृत वोटों वाले 22 निर्वाचन क्षेत्र पंजाब प्रांत में थे जबकि ऐसी एक-एक सीट खैबर पख्तूनख्वा और सिंध प्रांत में थी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने इनमें से 13 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव जीता, पांच पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने कब्जा जमाया जबकि चार सीटें पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों और दो अन्य निर्दलीयों ने जीतीं। खारिज किए गए वोटों की सबसे अधिक संख्या पंजाब के एनए-59 (तलागांग-सह-चकवाल) निर्वाचन क्षेत्र में थी, जहां पीएमएल-एन के सरदार गुलाम अब्बास ने 1,41,680 वोट हासिल किए जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी पीटीआई समर्थित मुहम्मद रुमान अहमद को 1,29,716 वोट मिले। इस तरह, जीत का अंतर 11,964 था जबकि खारिज किए गए वोटों की संख्या 24,547 थी। इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के नेता बैरिस्टर गौहर अली खान ने कहा कि उनकी पार्टी गठबंधन सरकार बनाने के लिए प्रतिद्वंद्वी पीएमएल-एन या पीपीपी से हाथ नहीं मिलाएगी और नवनिर्वाचित संसद में बहुमत होने के बावजूद विपक्ष में बैठेगी। सरकार बनाने या उनके साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर किसी से कोई बातचीत नहीं होगी। उनके साथ सरकार बनाने से बेहतर है कि हम विपक्ष में बैठें।