नई दिल्ली। जिस तरह ठाकुरनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान जबरदस्त भीड़ उमड़ी और महिलाएं बेहोश होने लगीं, जिस तरह बेकाबू भीड़ को देखते हुए मोदी को अपना भाषण जल्दी से खत्म करना पड़ा और तत्काल दुर्गापुर की सभा के लिए निकलना पड़ा, उसने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या पश्चिम बंगाल में मोदी को देखने के लिए उमड़ी भीड़ इस बात का संकेत है कि ममता बनर्जी का जादू का असर कम हो गया है? क्या ये भीड़ और खासकर महिलाओं की इतनी बड़ी संख्या पश्चिम बंगाल में भाजपा की बढ़ती ताकत की एक झलक है? क्या 24 परगना जैसे तृणमूल कांग्रेस के गढ़ में अब बदलाव की बयार आने वाली है? दरअसल टीवी पर मोदी का करिश्मा देख देख कर लोगों के लिए ये यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि ये वही नायक है जिसे हराने के लिए कुछ ही दिन पहले ममता बनर्जी को महागठबंधन की इतनी बड़ी रैली करनी पड़ी थी। और ये वही मोदी हैं जो बार बार ममता बनर्जी को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन भीड़ में मची अफरा तफरी और भगदड़ का आरोप आखिरकार प्रधानमंत्री समेत उनकी पार्टी ने भी ममता बनर्जी के लोगों पर ही लगा दिया। मोदी ने अपना भाषण खास तौर पर ममता बनर्जी पर हिंसा फैलाने के आरोप के साथ साथ तृणमूल और लेफ्ट को एक जैसा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी।उनका ध्यान बार बार बेकाबू भीड़ पर जाता रहा और वो लोगों से शांत रहने की अपील करते रहे। लेकिन उन्हें उनके ही लोगों ने मंच पर तत्काल भाषण खत्म करने और वहां से तुरंत निकल जाने का इशारा किया। उन्हें इस बात की आशंका हो गई थी कि अगर सभा लंबी चली तो हालात और बिगड़ सकते हैं। उत्तरी 24 परगना का यह इलाका ठाकुरनगर दरअसल बांगलादेश से आई एक पिछड़ी जनजाति मतुआ समुदाय के लोगों का इलाका है। इस रैली का आयोजन ऑल इंडिया मतुआ महासंघ ने ही किया था। मतुआ की आबादी यहां तकरीबन 30 लाख की है और ये उत्तरी 24 परगना के 5 लोकसभा सीटों में अपना असर रखते हैं। हालांकि पूरे राज्य में इस जनजाति के तकरीबन 75 लाख लोग हैं। और बनगांव संसदीय सीट पर (जिसमें ठाकुरनगर आता है) तो करीब करीब आधे वोटर मतुआ समुदाय के हैं। 24 परगना के तहत 63 विधानसभा क्षेत्र आते हैं और 10 लोकसभा सीटें हैं। लेकिन मोदी ने जिस ठाकुरनगर से अपने अभियान की शुरूआत की है, वह ममता बनर्जी का गढ़ है। ऐसे में मोदी की रैली में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जुटना ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी जरूर है।
उधर ठाकुरनगर के ठीक बाद दुर्गापुर की रैली ने भी भीड़ के मामले में ममता बनर्जी की नींद जरूर उड़ाई है। तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट की कार्यशैली को एक बताते हुए हिंसा की राजनीति करने और गुंडागर्दी का साम्राज्य चलाने के आरोप मोदी के चुनावी भाषणों के केन्द्र में रहा। ऐसे ही हमले अमित शाह अपने भाषणों में लगातार कर रहे हैं।भाजपा की चुनावी रणनीति का यह एक अहम पहलू है कि पश्चिम बंगाल में उसने बेहद आक्रामक तेवर के साथ खुद को उतारा है। उसे लगता है कि आसनसोल और दार्जिलिंग की उसकी सीट तो सुरक्षित है ही, इसके अलावा बाकी हिस्सों में अगर उसे अपना असर बढ़ाना है और सीटें जीतनी हैं, तो उन इलाकों में लगातार स्थानीय वोटरों को लुभाने के रास्ते खोजने होंगे।जिस तरह मोदी ने मतुआ के नट मंदिर में पूजा की और वहां की बोरोमा बीनापाणि देवी से मिलकर समर्थन मांगा, इससे जाहिर है कि उन्होंने मतुआ के नब्ज को पकड़ने और उन्हें भावनात्मक रूप से भाजपा से जोड़ने की एक पहल तो की ही है। अभी तक मतुआ समुदाय उन्हीं को वोच देता आया है जिनको देवी अपना समर्थन देती आई हैं। इसलिए मोदी की ये दोनों सभाएं इसी रणनीति के तहत रखी गई थीं कि कम से कम मतुआ समुदाय के साथ साथ वो यहां की तमाम लोकसभाई इलाकों में अपनी धमक का असर दिखा सकें।