बर्लिन। ग्रीनलैंड के पिघलते ग्लेशियर दुनियाभर में भारी तबाही मचाने की वजह बन सकते हैं। दरअसल, पानी का बढ़ता स्तर अटलांटिक महासागर की धाराओं को अनियंत्रित कर रहा है। इसका असर बाकी के महासागरों पर भी पड़ना तय माना जा रहा है, जिससे वे अपना वातावरण खो सकते हैं। ऐसा हुआ तो एशिया समेत पूरी दुनिया में चरम मौसम की घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है। साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।
शोध के मुताबिक, समुद्र के खारे पानी में ग्लेशियर के ताजे पानी की धाराएं तेजी से मिल रही हैं। इससे आने वाले वर्षों में अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) अनियंत्रित हो सकता है। एएमओसी पृथ्वी की सबसे बड़ी जल संचलन प्रणालियों में से एक है। इससे महासागरों की धाराएं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म और लवणीय जल को उत्तर दिशा जैसे कि पश्चिमी यूरोप की ओर ले जाती हैं तथा दक्षिण की ओर ठंडा जल भेजती हैं। यह विश्व स्तर पर तापमान को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर इसमें गड़बड़ होने लगी तो धाराएं अपने पारंपरिक रास्तों से भटक जाएगी। इसके परिणाम घातक साबित होंगे। जर्मनी और चीन के जलवायु वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने एक जलवायु मॉडल का उपयोग करते हुए ये निष्कर्ष पेश किए हैं। चिंता की बात यह है कि ग्रीनलैंड में हाल के दशकों में बर्फ के पिघलने की घटनाओं में लगभग 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। द्वीप के उत्तर और उत्तर-पश्चिम में सबसे ठंडे इलाकों में यह आंकड़ा 50 फीसदी तक बढ़ गया है। पिछले दशक से हर साल औसतन 300 गीगाटन बर्फ पिघल रही है। शोधार्थियों ने कहा, उत्तरी अटलांटिक में ताजे जल की मात्रा में वृद्धि हो रही है। इससे अटलांटिक महासागर में खारेपन पर असर पड़ रहा है। यह खारापन समुद्र को गर्म और ठंडा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ताजा पानी समुद्र के ऊपरी हिस्से को अधिक ठंडा जबकि निचले हिस्से को गर्म कर रहा है। नतीजतन एएमओसी धीमा हो रहा है, जिससे मौसम संबंधी जोखिम उत्पन्न होने लगे हैं।