नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में गृहिणी (होम-मेकर) द्वारा परिवार के लिए किए गए योगदान को अमूल्य और उच्च कोटी का बताया। साथ ही कहा कि उनकी अनुमानित आय दैनिक मजदूरों के लिए अधिसूचित न्यूनतम वेतन से कम नहीं हो सकती है। शीर्ष अदालत ने सड़क हादसे में एक गृहिणी की मौत के मामले में मुआवजा तय करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि गृहिणी द्वारा किए गए योगदान का मौद्रिक संदर्भ में आकलन करना मुश्किल है। पीठ ने कहा है कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि एक गृहिणी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी परिवार के सदस्य की, जिसकी आय परिवार के लिए आजीविका के स्रोत के रूप में मूर्त है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि गृहिणी द्वारा किए जाने वाले कार्यों को यदि एक-एक करके गिना जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं रह जाएगा कि उनका योगदान उच्चकोटि का एवं अमूल्य है। शीर्ष अदालत ने जून, 2006 में सड़क हादसे में हुई 50 साल की महिला की मौत के मामले में अपील का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि तथ्यों से जाहिर है कि मृतक महिला नौकरी नहीं कर रही थी, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह एक गृहिणी थी। पीठ ने कहा है कि ऐसे में महिला की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आय, दैनिक मजदूरों के लिए अधिसूचित न्यूनतम वेतन से कम नहीं आंका जा सकता है। पीठ ने कहा है कि हम विभिन्न मदों में मुआवजे का आंकलन करने बजाए, प्रतिवादी को छह लाख रुपये मृतक महिला के पति और बच्चों को बतौर मुआवजा देने का आदेश दिया है। 2.50 लाख रुपये का भुगतान पहले ही किया जा चुका है, लिहाजा अब 3.50 लाख रुपये का भुगतान छह सप्ताह के भीतर करने का आदेश दिया जाता है। पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले के खिलाफ मृतक महिला के पति, बेटी और बेटा की अपील का निपटारा कर दिया। इस मामले में जिला अदालत ने पीड़ित परिवार को यह कहते हुए मुआवजा का भुगतान करने से इनकार कर दिया था कि हादसे में शामिल वाहन का बीमा नहीं था। जिला अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर उच्च न्यायालय ने महज 2.50 लाख रुपये मुआवजा का भुगतान करने का आदेश दिया था