लखनऊ। राजेंद्र तिवारी
प्रदेश में सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूलों को शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश नहीं देना महंगा पड़ेगा। मान्यता संबंधी शर्तों में अब इसे शामिल किया जाएगा और इसे न पूरा करने पर बेसिक शिक्षा अधिकारी मान्यता वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर सकेंगे।
आरटीई 2009 के तहत निजी स्कूलों के कक्षा एक की 25 फीसदी सीटों पर गरीब व अलाभित समूह के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। लेकिन अक्सर अभी तक सीबीएसई, आईसीएसई के स्कूल गरीब बच्चों को प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती है क्योंकि शर्तों में इसका उल्लेख नहीं है। हालांकि जब राज्य सरकार इन स्कूलों को मान्यता के लिए एनओसी देती है तो उसमें साफ है कि यदि राज्य सरकार के किसी नियम की अवहेलना स्कूल करता है तो उसकी मान्यता वापस ली जा सकती है। बेसिक शिक्षा विभाग की अपर शिक्षा निदेशक ललिता प्रदीप ने निर्देश दिया है कि इस प्राविधान के तहत उन स्कूलों में खिलाफ कार्रवाई की जाए जिन्होंने गरीब बच्चों को अपने यहां प्रवेश नहीं दिया है। राजधानी लखनऊ में ही इस वर्ष आरटीई के तहत 12 हजार विद्यार्थी चयनित हुए हैं लेकिन उनमें से सात हजार बच्चों को ही अभी तक प्रवेश मिल पाया है। प्रवेश न लेने पर 55 स्कूलों को नोटिस दी जा चुकी है और एक स्कूल के खिलाफ एफआईआर के निर्देश हैं। अभी तक प्रदेश में एक भी स्कूल की मान्यता इस आधार पर वापस नहीं ली गई है। आरटीई एक्ट 2009 के तहत निजी स्कूलों की कक्षा एक की 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं। इन पर प्रवेश लेने वाले बच्चों की फीस प्रतिपूर्ति राज्य सरकार करती है। यह 450 रुपए प्रति विद्यार्थी के हिसाब से की जाती है। कक्षा एक में प्रवेश लेने वाला विद्यार्थी कक्षा आठ तक निशुल्क पढ़ सकता है। पांच हजार रुपए प्रतिवर्ष यूनिफार्म, किताबें व अन्य सामानों के लिए एकमुश्त दिया जाता है।