नई दिल्ली। किसी नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है और इससे संबंधित मामलों में शीघ्रता से निर्णय लेने की जरूरत है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा। शीर्ष कोर्ट ने कहा इस मसले पर जल्द निर्णय नहीं लिया जाता है तो संबंधित व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्राप्त बहुमूल्य अधिकार से वंचित रह जाएगा।
जस्टिस बी.आर. गवई और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि लोगों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण से संबंधित अनुच्छेद-21 संविधान की ‘आत्मा’ है। पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि उसके सामने बंबई हाईकोर्ट के कई ऐसे मामले आए हैं, जिनमें जमानत या अग्रिम जमानत की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर शीघ्रता से फैसला नहीं किया जा रहा है। हाल ही में पारित अपने आदेश में पीठ ने कहा कि ‘हमारे सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें जज मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला नहीं कर रहे हैं बल्कि विभिन्न आधारों पर मामले को टालने का एक बहाना ढूंढते हैं।’ इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने बंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया कि आपराधिक मामलों में क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करने वाले सभी जजों को जमानत/अग्रिम जमानत से संबंधित मामले पर यथाशीघ्र निर्णय लेने के हमारे (सुप्रीम कोर्ट) आग्रह से अवगत कराएं। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस फैसले से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अवगत कराने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने 30 मार्च, 2023 के बंबई हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसकी जमानत याचिका का निपटारा करते हुए उसे निचली अदालत के समक्ष जमानत अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि आरोपी लगभग साढ़े सात साल तक जेल में था और ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत याचिका दायर करने से पहले, आरोपी ने इसी तरह की एक याचिका दायर की थी, जिसे अप्रैल 2022 में वापस ले लिया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मार्च में जारी हाईकोर्ट के आदेश को 29 जनवरी, 2024 को रद्द कर दिया था और दो सप्ताह में गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला करने को कहा था। इसके बाद हाईकोर्ट ने 12 फरवरी, 2024 को आरोपी को जमानत दे दी थी।