धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण पर कोई आदेश न दें अदालतें : शीर्ष कोर्ट

दिल्ली दिल्ली लाइव मुख्य समाचार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर की सभी अदालतों को मौजूदा धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ लंबित मुकदमों में सर्वेक्षण सहित कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया। अदालत ने कहा कि यह रोक तब तक रहेगी जब तक पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के पक्ष और विपक्ष में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने देशभर में धार्मिक स्थल के परिसरों के सर्वेक्षण की मांग को लेकर नए वाद (मुकदमा) पंजीकृत करने पर भी रोक लगा दी है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और के.वी. विश्वनाथन की विशेष पीठ ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के वैधानिकता को चुनौती देने और इसे बनाए रखने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर विचार करते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लंबित मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने तक सर्वेक्षण के आदेश सहित कोई भी प्रभावी अंतिम या अंतरिम आदेश पारित नहीं करेंगे। पीठ ने कहा कि अगले आदेश तक देशभर में किसी भी धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण या स्थितियों में बदलाव की मांग को लेकर नये वाद (मुकदमा) दाखिल किए जा सकते हैं, लेकिन उसे पंजीकृत नहीं किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 के प्रावधानों की वैधता, रूपरेखा और दायरे की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में देश की सभी अदालतों से धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण या स्थितियों में बदलाव की मांग को लेकर दाखिल मामलों में अपने हाथ पीछे खींचने को कहना उचित होगा। पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों ने देशभर की अदालतों को आदेश पारित करने पर रोक लगाने पर आपत्ति जताई और कहा कि हमारी बात सुने बगैर अंतरिम आदेश पारित किया जा रहा है। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि इस स्तर पर, 2 मुख्य बातें हैं, पहला कि मामले पर विचार करने की जरूरत है और दूसरा क्या यह उचित नहीं होगा कि अन्य अदालतों में तब तक मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दें? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 4 सप्ताह में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम-1991 की संवैधानिकता को चुनौती देने और इस कानून को प्रभावी बनाए रखने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने और जवाबी हलफनामे की प्रति एक वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया, जहां से मामले में शामिल कोई पक्षकार इसे डाउनलोड कर सकें। मामले की सुनवाई शुरू होते ही, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल मेहता से पूछा कि सरकार का जवाब रिकार्ड पर नहीं है। इस पर मेहता ने जवाब दिया हम हम जवाब दाखिल करेंगे। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उनसे कहा कि आप जो भी हो, अपना जवाब दाखिल करें। हम केंद्र के जवाब के बगैर मामले की सुनवाई नहीं करेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस ‌विश्वनाथन ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से कहा कि याचिका पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, यह एक बड़ा सवाल है, एक तर्क जिसका आपको सामना करना होगा। उन्होंने कहा कि कानून की धारा 3 का एक दृष्टिकोण यह है कि यह पहले से ही अंतर्निहित संवैधानिक सिद्धांतों की एक प्रभावी पुनरावृत्ति मात्र है। सिविल अदालत, सुप्रीम कोर्ट के साथ समानांतर दौड़ नहीं लगा सकती, इसीलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। इससे पहले पीठ को बताया गया कि देशभर में लगभग 10 मस्जिदों या धर्मस्थलों के खिलाफ 18 मुकदमे लंबित हैं। पीठ ने कहा कि जवाब दाखिल होने के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *