नई दिल्ली। नीलू सिंह
उच्चतम न्यायालय के आदेश के मुताबिक, अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा तय करने में अल्पसंख्यक आयोग जुटा हुआ है। आयोग ने कहा है कि इस संदर्भ में कुछ व्यवहारिक दिक्कत है जिस वजह से वह संविधान विशेषज्ञों की राय लेगा।
आयोग ने स्पष्ट किया है कि संविधान और सभी के हितों के ध्यान में रखते हुए वह अपनी रिपोर्ट तीन माह की तय समयसीमा के भीतर सरकार एवं शीर्ष अदालत को सौंप देगा। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयूरुल हसन रिजवी का कहना है कि इस मामले में विचार करने एवं रिपोर्ट तैयार करने के लिए आयोग के उपाध्यक्ष जॉर्ज कुरियन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है। रिजवी ने कहा, अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा तय करने में मुख्य रूप से तीन आधार की बात होती है। एक राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या का आधार, दूसरा भाषाई आधार और तीसरा प्रादेशिक स्तर पर आबादी का आधार। किस आधार पर परिभाषा होनी चाहिए, यह हमें तय करना है।
यह पूछे जाने पर कि क्या आयोग के सामने यह तय करने में कुछ व्यवहारिक दिक्कतें हैं तो उन्होंने कहा, दिक्कत है। कोई कहता है कि प्रादेशिक स्तर पर आबादी के मुताबिक परिभाषा तय करिए तो कुछ लोग भाषाई आधार की बात करते हैं। कल लोग यह भी कहने लगेंगे कि जिला या ब्लॉक स्तर की आबादी के आधार पर परिभाषा तय करिए। इसलिए हमें सर्वसम्मति से और संविधान के मुताबिक हल निकालना है।
रिजवी ने कहा, मैंने समिति से कहा है कि इस मामले में संविधान विशेषज्ञों की राय ली जाए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, उच्चतम न्यायालय के आदेश से देश के अल्पसंख्यकों अथवा दूसरे किसी भी वर्ग को चिंता करने की जरूरत नहीं है। हम संविधान और सभी के हितों के मुताबिक अपनी सिफारिशें करेंगे।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत 11 फरवरी को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिभाषा तीन महीने के भीतर तय करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को कहा कि वह अपनी मांग से जुड़ा प्रतिवदेन आयोग के समक्ष फिर से दाखिल करें जिस पर तय समयसीमा के भीतर फैसला होगा।