सोशल मीडिया पर हिंसा देख खुद को घरों में कैद कर रहे हैं बच्चे

अंतरराष्ट्रीय

लंदन। सोशल मीडिया हर पल बच्चों के लिए नया खतरा बनकर उभर रहा है। बच्चों को हिंसा से बचाने के काम में जुटी ब्रिटेन की संस्था यूथ इनडाउनमेंट फंड (वाईईएफ) ने ये दावा किया है। रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया पर हिंसा देखने वाले बच्चे खुद को घर में कैद करने को मजबूर हैं। बच्चे इतने डरे हैं कि वे घर से बाहर खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे।
वाईईएफ के अनुसार चार में से एक किशोर सोशल मीडिया पर हिंसा, लड़ाई झगड़ा, चाकूबाजी और भीड़ की हिंसा का वीडियो देख सहमे हुए हैं। 13 से 17 वर्ष के दस हजार बच्चों पर शोध में ये खुलासा हुआ है। शोध के अनुसार दस में से आठ बच्चे या किशोर जो सोशल मीडिया पर हथियर देखते हैं वे अपने ही क्षेत्र में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते। वहीं 68 फीसदी घर से बाहर नहीं निकलने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। शोध के अनुसार सोशल मीडिया के जरिए हिंसक कंटेंट का असर बच्चों के मन मस्तिष्क पर पड़ रहा है। 15 साल से कम उम्र के बच्चों के मन में डर हावी हो रहा है। वहीं किशोर गलत आदतों को सीख रहे हैं। हिंसक वीडियो सामग्री देखने के कारण बच्चों का व्यवहार भी बदल रहा है। बच्चे इस तरह की चीजों को देखने के बाद घर- परिवार में अभद्र व्यवहार कर रहे हैं। वाईईएफ के शोध में शामिल 32 फीसदी लड़कों ने कहा कि स्कूल जाते वक्त मोबाइल न रखने का नियम होना चाहिए। वहीं इस तरह का विचार रखने वालों में लड़कियों की दर 21 फीसदी है। शोध के अनुसार आसपास के क्षेत्र में इस तरह की घटना होने पर बच्चे तो बाहर निकलने से बच ही रहे हैं, अभिभावक भी उनको बाहर भेजने से डरते हैं जिससे डर का माहौल बन रहा है। सोशल मीडिया कंपनियों का कहना है कि इस तरह के कंटेंट पर नकेल कसी जा रही है जिससे समाज में डर और भय का माहौल न हो। मेटा का कहना है कि वे एआई के जरिए इस तरह के कंटेंट हटा रहा है। स्नैपचैट का कहना है कि वे लगातार इस तरह की सामग्री पर प्रतिबंध लगाकर बच्चों और समाज को खराब कंटेंट से बचाने की कोशिश में जुटा हुआ है।

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