हल्द्वानी। अनीता रावत
उत्तराखंड का राज्य पुष्प ‘ब्रह्मकमल’ इस बार महज 3000 मीटर की ऊंचाई पर खिल गया है। आमतौर पर यह समुद्र तल से 3500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बेशुमार खिला यह पुष्प कुदरत की सुंदरता पर चार चांद लगा रहा है। पिथौरागढ़ में छिपलाकेदार, कनार, बलाती, राजरंभा, सूरज कुंड, नंदा कुंड और रूरखान में अभी ब्रह्म कमल खिल गया है। वैज्ञानिकों ने ऊंचाई वाले इलाकों में अच्छी बर्फबारी और बारिश को इसका कारण बताया है।
ब्रह्मकमल पुष्प कुमाऊं और गढ़वाल में आस्था का प्रतीक है। पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में इसी पुष्प से मां नंदा की पूजा की जाती है। स्थानीय लोग ढोल-नगाड़ों के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों से इस पुष्प को परंपरागत ढंग से लेकर आते हैं। नंदाष्टमी के दिन इसी पुष्प को अर्पित कर मां नंदा की पूजा होती है। ब्रह्मकमल पुष्प का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह औषधीय गुणों से भरपूर भी माना गया है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ब्रह्मकमल को भिगाकर इस पानी को पिलाने से असाध्य रोगों के मरीजों को लाभ मिलता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है।
इस साल उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई अच्छी बारिश और सितंबर की शुरुआत में ही हुई बर्फबारी से ब्रह्मकमल का दायरा बढ़ा है। इस बार यह पुष्प महज 3000 मीटर पर ही खिल गया है, जो हिमालय और उसकी तलहटी में स्थित बुग्यालों की सुंदरता को बढ़ा रहा है। ब्रह्मकमल के इस बार बहुतायत में खिलने से यहां के जंगलों और बुग्यालों की रौनक बढ़ गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस पुष्प का दायरा बढ़ना और अधिक मात्रा में खिलना पर्यावरण के लिहाज से भविष्य के लिए सु:खद है। बीते सालों की अपेक्षा इस बार प्रचुर मात्रा खिला ब्रह्मकमल और इसका बढ़ा दायरा पर्यावरण प्रेमियों के लिए राहत की बात है।