देहरादून। केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में एक बार फिर कमल खिल गया। भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत पर 5622 वोट के अंतर से जीत हासिल की। आशा को जहां 23,814 वोट मिले। वहीं, मनोज को 18,192 वोट मिले। उपचुनाव में निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे त्रिभुवन सिंह भी राजनीतिक प्रेक्षकों को चौंकाने में कामयाब रहे। 9311 वोट लेकर त्रिभुवन तीसरे स्थान पर रहे। चौदह राउंड तक चली मतगणना में शुरू से ही भाजपा प्रत्याशी आशा ने बढ़त बना ली थी। दोपहर, निर्वाचन विभाग के मतगणना के नतीजों की घोषणा करते ही भाजपा कार्यकर्ताओं में खुशी लहर दौड़ गई।
भाजपा ने जीत के बाद कहा कि केदारनाथ में मिली जीत से देश को सनातन का संदेश देने में पार्टी कामयाब रही है। पहले अयोध्या और फिर बदरीनाथ उपचुनावों में मिली हार से ही पार्टी सनातन को लेकर विपक्ष के निशाने पर थी। लेकिन केदारनाथ उपचुनाव में मिली बड़ी जीत से अब विपक्ष के हाथ से यह हथियार भी छिन गया है। केदारनाथ उपचुनाव की घोषणा के बाद से कांग्रेस लगातार भाजपा पर सनातन को लेकर हमलावर थी। पार्टी के नेता अपने प्रचार अभियान में सार्वजनिक तौर पर दावा कर रहे थे कि अयोध्या और बदरीनाथ के बाद अब केदारनाथ की जनता भाजपा को सबक सिखाएगी। लेकिन केदारनाथ के चुनाव नतीजों के बाद अब पार्टी को बड़ी राहत मिली है। केदारनाथ में मिली जीत से पूरे देश में भी पार्टी के पक्ष में सकारात्मक संदेश गया है। केदारनाथ उपचुनाव के दौरान कांग्रेस ने केदारनाथ मंदिर की शिफ्टिंग, मंदिर से सोना चोरी जैसे कई मुद्दे उठाए थे। लेकिन उपचुनावों में जनता ने इन मुद्दों को एक तरह से पूरी तरह नकार कर भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट से हुआ कमाल केदारनाथ उपचुनाव में मिली जीत भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट का नतीजा है। पार्टी ने चुनाव का ऐलान होने से करीब दो महीने पहले ही सरकार और संगठन को मोर्चे ´पर उतार दिया था। बदरीनाथ उपचुनाव में मिली हार से पार्टी के भीतर बेचैनी बढ़ गई थी। उस हार से सबक लेते हुए पार्टी ने केदारनाथ चुनाव का ऐलान होने से पहले ही तैयारी शुरू कर दी थी। प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी के नेतृत्व में पार्टी का पूरा संगठन दो महीने से अधिक समय तक केदारनाथ क्षेत्र में सक्रिय रहा। इसके साथ ही कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, गणेश जोशी, सुबोध उनियाल, रेखा आर्या और सौरभ बहुगुणा को मंडल स्तर पर जिम्मेदारी देकर कार्यकर्ताओं से संवाद का जिम्मा दिया गया। इसके अलावा सभी सांसदों, विधायकों और नेताओं की ड्यूटी लगाकर मतदाताओं को रिझाने का काम किया गया। केदारनाथ उपचुनावों में गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी की भी अहम भूमिका रही। बलूनी ने प्रचार के साथ ही पार्टी नेताओं के बीच आपसी समन्वय में अहम भूमिका निभाई। यही वजह रही कि पार्टी पिछले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों की तुलना में इस बार अपने वोट बढ़ाने में कामयाब रही है। बदरीनाथ उपचुनाव में मिली हार की वजह से भाजपा असहज महसूस कर रही थी। इस वजह से कांग्रेस को भी भाजपा पर एक तरह से बढ़त मिल गई थी। लेकिन केदारनाथ उपचुनाव में पार्टी ने अपनी कमियों को सुधारते हुए जीत हासिल की जिससे एक तरह से पार्टी बदरीनाथ में मिली हार का भी बदला चुकाने में कामयाब रही है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा है।