नई दिल्ली | नीलू सिंह
बढ़ती आबादी और सुदृढ़ होती क्रय शक्ति के कारण देश में लगातार दूध की मांग में वृद्धि होती जा रही है। इसके उलट जलवायु परिवर्तन के कारण दूध के उत्पादन में तमाम प्रयासों के बावजूद गिरावट में आने की आशंका है। सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक अगले साल ही इसका असर भी दिखने लगेगा।
जलवायु परिवर्तन के भारतीय कृषि पर प्रभाव संबंधी अध्ययन पर आधारित कृषि मंत्रालय की आंकलन रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक दूध के उत्पादन में 1.6 मीट्रिक टन की कमी आ सकती है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संबद्ध संसद की प्राक्कलन समिति के प्रतिवेदन में इस रिपोर्ट का जिक्र है। समिति ने इसके आधार पर अनुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तनके कारण 2050 दूध उत्पादन में मौजूदा उत्पादन में 15 मीट्रिक टन की गिरावट आ सकती है।
भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा संसद में पेश प्रतिवेदन के अनुसार दुग्ध उत्पादन में सर्वाधिक गिरावट उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में दलील दी गई है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण, ये राज्य दिन के समय तेज गर्मी के दायरे में होंगे और इस कारण पानी की उपलब्धता में गिरावट पशुधन की उत्पादकता पर सीधा असर डालेगी।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण खेती पर पड़ने वाले असर से किसानों की आजीविका भी प्रभावित होना तय है। चार हेक्टेयर से कम कृषि भूमि के काश्तकार महज खेती से अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम नहीं होंगे।उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में खेती पर आश्रित 85 प्रतिशत परिवारों के पास लगभग पांच एकड़ तक ही जमीन है। इनमें भी 67 फीसदी सीमांत किसान हैं, जिनके पास सिर्फ 2.4 एकड़ जमीन है।
फसलों पर असर के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 तक चावल के उत्पादन में चार से छह प्रतिशत, आलू में 11 प्रतिशत, मक्का में 18 प्रतिशत और सरसों के उत्पादन में दो प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। इसके अलावा एक डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि के साथ गेंहू की उपज में 60 लाख टन तक गिरावट आएगी।
फल उत्पादन पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि सेब की फसल का स्थानांतरण हिमाचल प्रदेश में समुद्र तल से 2500 मीटर ऊंचाई तक हो जाएगा। अभी यह 1250 मीटर ऊंचाई पर होता है। इसका मतलब मौजूदा बाग बर्बाद हो जाएंगे और फल के लिए ऊंचाई पर बागवानी स्थानांतरित करनी होगी।
उत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण कपास उत्पादन थोड़ी कमी आने का अनुमान है। लेकिन इसकी भरपाई मध्य और दक्षिण भारत में हो सकती है, क्योंकि इन इलाकों में उत्पादन बढ़ने का अनुमान है। लेकिन पश्चिम तटीय क्षेत्र केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप में नारियल उत्पादन में इजाफा होने का अनुमान है।
भविष्य की इस चुनौती के मद्देनजर मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर समिति ने सिफारिश की है। इनमें अनियंत्रित खाद के इस्तेमाल से बचने,भूमिगत जलदोहन पर रोक, उचित जल प्रबंधन की मदद से युक्तिसंगत सिंचाई साधन विकसित करना प्रमुख है। समिति ने जैविक और जीरो बजट खेती को बढ़ावा देने की भी अनुशंसा की है।