नई दिल्ली। टीएलआई
तालाब, कुआं और झील का पानी प्रदूषित करने वाला व्यक्ति नर्क में जाता है। वेदों और पुराणों का हवाला देते हुए यह टिप्पणी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शुक्रवार को की।
एनजीटी प्रमुख जस्टिस एके गोयल की अगुआई वाली पीठ ने कहा है कि भारत में हमारे पास ऐसे लिखित ग्रंथ हैं, जो यह दर्शाते हैं कि प्रकृति और पर्यावरण को वाजिब सम्मान दिया गया है। पीठ ने कहा कि हमारे परंपरा में प्रकृति और पर्यावरण को न सिर्फ श्रद्धापूर्वक व्यवहार किया गया है, बल्कि देश के लोगों ने पूजा है। हमारे वैदिक साहित्य यह बताते हैं कि मानव शरीर को पंच तत्वों से निर्मित माना गया है जिनमें आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी शामिल हैं। प्रकृति ने इन तत्वों और जीवों के बीच एक संतुलन रखा है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि अनंतकाल या वैदिक या पूर्व वैदिक काल से हमने पाया कि भारतीय उपमहाद्वीप में साधु-संत, रिषी मुनि बहुत बड़े दूरदर्शी रहे हैं। पीठ ने कहा है कि सृष्टि की रचना को वैज्ञानिक तरीके से समझाया। जस्टिस गोयल ने अपने फैसले में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों का पूरी बुद्धिमत्ता के साथ रहस्योदघाटन किया। पीठ ने कहा कि प्रकृति के करीब लोगों को लाने के लिए प्राचीन भारत में बुद्धिजीवियों ने इसे धार्मिक रूप दिया ताकि लोग प्रकृति के बारे में उपदेशों को आदेश के तौर पर लें और उसके संरक्षण के लिए हर कदम उठाएं। पीठ ने कहा कि वैदिक साहित्य में जल को बहुत उच्च सम्मान दिया गया है।
एनजीटी ने कहा है कि जल प्रदूषण को हतोत्साहित करने के लिए हमने पदम पुराण में एक चेतावनी पाई है। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति तालाब, कुआं या झील के जल को प्रदूषित करेगा, वह नर्क का भागी होगा। पीठ ने कहा है कि छांदोग्य उपनिषद में कहा गया है कि जल से पौधे पैदा होते हैं जिनसे भोजन पैदा होता है। पीठ ने ऋग्वेद में कहा गया है कि वनों को नष्ट नहीं करना चाहिए। ट्रिब्यूनल ने बेंगलुरु में गोदरेज प्रापर्टीज लिमिटेड और वंडर प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड की बहुमंजिला लग्जरी परियोजना को मिली पर्यावरण मंजूरी को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। इन परियोजना को तुरंत गिराने का आदेश दिया है।