नई दिल्ली, अर्पणा पांडेय। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार को केदारनाथ में पर्याप्त सीवेज उपचार और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए समयसीमा बताने का निर्देश दिया है।
हरित निकाय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मंदाकिनी नदी में सीवेज बहाया जा रहा है और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमी से भी नदी में प्रदूषण हो रहा है। इससे पहले, जमीनी स्थिति का पता लगाने के लिए न्यायाधिकरण ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी और देहरादून में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति गठित की थी।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने चार अक्तूबर के आदेश में समिति की रिपोर्ट पर गौर किया। इसमें कहा गया था कि केदारनाथ में सीवेज के उपचार के लिए कोई सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) नहीं है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में समिति ने पाया है कि केदारनाथ में ठोस और प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए भी कोई अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित नहीं है, जो सीजन के दौरान प्रति दिन 1.667 टन होने का अनुमान है। समिति को उसके दौरे के दौरान कई स्थानों पर निर्माण एवं विध्वंस से उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ मिले हैं।
पीठ ने कहा कि हम यह भी निर्देश देते हैं कि अगले सीजन से पहले सोखने वाले गड्ढों का उचित रखरखाव किया जाए और सीवेज सिस्टम के माध्यम से 600 केएलडी एसटीपी तक 100 प्रतिशत कनेक्टिविटी सुनिश्चित की जाए। इस संबंध में हलफनामा छह सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए। मामले पर आगे की कार्यवाही के लिए 30 जनवरी की तारीख निर्धारित की गई है।