लखनऊ। टीएलआई
बुंदेलखंड का शेखपुरा गुढ़ा गांव। चार दशक पहले इस गांव की एक युवती बंदूक उठाकर मशहूर डकैत बन गई। लेकिन चार दशक में बहुत कुछ बदल गया। एक बार फिर इस गांव की दो बेटियों ने बंदूक उठाया, लेकिन इस बार दोनों पुलिस में भर्ती होकर मां-बाप के सपने को साकार कर रही हैं।
जहां कभी फूलन जैसी डाकू पैदा हुई थी, अब उस गांव की बेटियां सिपाही बन कर समाज की सेवा में जुट रही हैं। दस्यु प्रभावित शेखपुरा गुढ़ा का नाम आते ही दो नाम याद आ जाते हैं एक नाम डाकू फूलन का तो दूसरा बेहमई नरसंहार का। डाकू फूलन शेखपुरा गुढ़ा गांव में पैदा हुई थी। बाद वह डाकू बन गई और बेहमई नरसंहार समेत कोई हत्या और लूट की वारदातों को अंजाम दिया। 1981 के दौर में जब भी इस गांव में पुलिस आती थी तो डकैतों की तलाश में आती थी। लेकिन अब सबकुछ बदल गया है। स्कूल कॉलेज की व्यवस्था होने से इस गांव में शिक्षा की बयार बही। इससे यहां की बेटियां भी देश के लिए कुछ करने का ललक जगा।
पूनम पुत्री दर्शन और पूनम पुत्री आशोक आज दोनों यूपी पुलिस में हैं। दर्शन की बेटी पूनम मथुरा के माठ थाने में बतौर महिला आरक्षी तैनात है। पूनम कहती है कि गांव में खुले स्कूल ने बेटियों को सपनों को साकार किया है। पूनम के पिता दर्शन ने बताया कि पूनम की मां चाहती थी कि वह पढ़-लिख जाए। हम दोनों तो अनपढ़ थे लेकिन बेटी का पढ़ाने में पीछे नहीं हटे। बेटी पूनम ने भी मां के सपने को साकार किया है। काश आज उसकी मां होती, वार्दी में बेटी को देखकर काफी खुश होती। पूनम पुत्री अशोक ने शादी होने के बाद पुलिस में भर्ती होने का सपना साकार किया। मथुरा में ही तैनात पूनम ने बताया कि अब भी वह पढ़ाई कर रही है और पुलिस अफसर बनना चाहती है। इन दोनों की सफलता के पीछे बेशक इनके मां-बाप का हाथ है। लेकिन गांव की स्थिति बदलने के लिए भगीरथ बनकर सामने आई थी गांव की प्रधान भगवती देवी। 2009 में प्रधान बनी भगवती देवी ने सबसे पहले अवैध शराब के धंधे को गांव से खत्म किया। उसके इस पहल में गांव की महिलाओं और युवाओं ने भी साथ दिया। फिर जुआ समेत कई काले धंधे को गांव से नष्ट किया। स्कूलों में पढ़ाई हो इसका भी खास ख्याल रखा। भगवती के प्रयास से ही गांव को एक नई पहचान मिली।