नई दिल्ली, अर्पणा पांडेय।
वैज्ञानिकों के शोध में एक चिंताजनक खुलासा हुआ है। यह निर्ष्कष आने वाले समय में समाज पर गहरा असर डालेगा। शोध में सामने आया है कि खुद के शरीर के बनावट से आज के युवा असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। वह दूसरों की शरीर से तुलना कर रहे हैं जो उनमें नकारात्मक भावना पैदा कर रही है। अध्ययन के दौरान लगभग 35 फीसदी किशोरों ने बताया कि उनके शरीर की बनावट आदर्श स्थिति से ज्यादा बड़ी थी। वहीं 20 फीसदी ने कहा कि वह अधिक पतले नजर आए। वहीं लगभग 45 फीसदी युवाओं ने आदर्श शरीर के आकार की सूचना दी। शोधकर्ताओं ने कहा कि सोशल मीडिया फेसबुक, इंस्टा, स्नैपचैट पर जारी वीडियो या तस्वीरों को देखकर किशोर में अपने बढ़े वजन को लेकर असंतोष नजर आए।
एक रिपोर्ट के अनुसार, युवाओं में अपने शरीर के बनावट को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के वाटरलू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि 55 फीसदी किशोर अपनी शरीर की छवि को लेकर खुश नहीं है। उनके अनुसार, सोशल मीडिया पर युवा शारीरिक बनावट को लेकर लगातार नकारात्मक हो रहे हैं। इससे उन पर मानसिक दबाव बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह मौजूदा समय में एक वैश्विक मुद्दा बनता जा रहा है। इस अध्ययन के निष्कर्ष जर्नल ऑफ द एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स में प्रकाशित हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि जब किसी व्यक्ति के मन में अपने शरीर के बारे में लगातार नकारात्मक विचार और भावनाएं होती हैं तो शरीर में असंतोष बढ़ता है। अध्ययन के दौरान 10 से 17 वर्ष की आयु वर्ग के 21,277 युवाओं का डाटा एकत्र किया गया। इसमें ऑस्ट्रेलिया,कनाडा, चिली,मैक्सिको, ब्रिटेन और अमेरिका देश के युवाओं को शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि सोशल मीडिया पर अधिक स्क्रीन समय के बढ़ने से युवाओं में नकारात्मक शारीरिक छवि का अनुपात बढ़ गया है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि मौजूदा समय में सोशल मीडिया की बढ़ती तादात से युवा लगातार एकदूसरे की तस्वीरें देख रहे हैं। इससे उन्हें यह एहसास होता है कि उनकी शारीरिक बनावट दूसरों की तुलना में ज्यादा खराब है। ऐसे में वह नकारात्मक सोच और भावना से ग्रसित होते जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉटरलू स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ साइंसेज के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए एक ड्राइंग का उपयोग किया। इसमें बढ़ते वजन की आठ शारीरिक तस्वीरों को दिखाया गया। इससे यह निर्धारित किया जा सके कि एक आदर्श शरीर प्रकार के रूप में क्या माना जाएगा। इसके बाद सभी छह देशों के किशोरों को यह चुनने के लिए कहा गया कि कौन सी तस्वीर उनके शरीर के आकार से सबसे अधिक मिलती-जुलती है। वहीं कौन सी तस्वीर सबसे अधिक वैसी दिखती है जैसे वे अपने शरीर को देखना चाहते हैं। इस दौरान जिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वह अपनी तस्वीरे या वीडियो डालते हैं, उसे मापकर देखने पर पता चला कि उनमें असंतोष अधिक जुड़ा मिला। इसमें करीब 50 फीसदी अधिक किशोर ने अपने शरीर की बनावट को बड़ा या पतला बताया। अध्ययन के दौरान अक्सर महिलाओं में शरीर को लेकर ज्यादा असंतोष रहता है, लेकिन यहां पुरुषों में भी नकारात्मक छवि देखने को मिली। इसमें ऑस्ट्रेलिया में 33 फीसदी और मैक्सिको में 22 फीसदी पुरुष युवाओं ने माना कि उनकी शारीरिक बनावट नकारात्मक है। विशेषज्ञों ने कहा कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले किशोरों का समर्थन करने की जरूरत है। मीडिया साक्षरता कार्यक्रम शारीरिक असंतोष को कम करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही किशोरों को यह समझना सिखा सकते हैं कि सोशल मीडिया पर वे जो छवियां देखते हैं वे हमेशा वास्तविक नहीं होती हैं।एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 31 फीसदी महिलाओं में शरीर के वजन को लेकर असंतोष रहती हैं। वहीं 22 फीसदी पुरुषों ने इस दबाव को महसूस किया है। यह 18 से 25 वर्ष की आयु वाले भारतीयों ने अपने शारीरिक असंतोष की सूचना दी। हालांकि, वयस्कों में यह अंतर करीब 34.44 फीसदी तक है। इसमें भी 10 से 33 प्रतिशत तक महिलाएं वजन और सोशल मीडिया के असंतोष में शामिल रही।