बीजिंग। यदि चीन के वैज्ञानिकों का दावा सच है तो आने वाले समय में मोबाइल और लैपटॉप को कभी चार्ज ही नहीं करना पड़ेगा। दावा किया जा रहा है कि चीनी वैज्ञानिक कई वर्षों से लघु परमाणु बैटरियों के विकास पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका और सोवियत संघ ने पानी के अंदर, दूरस्थ विज्ञान स्टेशनों और अंतरिक्ष यान में उपयोग के लिए परमाणु बैटरी तकनीक की खोज की, लेकिन हार्डवेयर भारी और महंगा था।
चीन ने परमाणु ऊर्जा से चलने चलने वाली एक बैट्री बनाई है, जो लिथियम-आयन बैटरी से 10 गुना अधिक शक्तिशाली है। इसे मोबाइल और लैपटॉप में लगाकर एक बार चार्ज करने के बाद अगले 50 साल तक रिचार्ज करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। चीनी कंपनी बीटावोल्ट ने यह कारनामा किया है। स्टार्टअप बीटावोल्ट ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन से पहले पायलट परीक्षण शुरू कर दिया है। अगले साल तक बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। सिक्के के आकार की बैट्री की मदद से ड्रोन भी चला सकेंगे। यह परमाणु डिजाइन शुरुआत में 100 माइक्रोवाट बिजली और 3 वोल्ट का करंट प्रदान करता है। यह 15 गुना 15 गुना पांच घन मिलीमीटर बड़ा है। कंपनी की योजना अगले साल तक 1 वॉट पावर वाली बैट्री विकसित करना शामिल है। कंपनी ने बताया कि उनकी बैट्री का डिजाइन सुरक्षा के तौर पर सही है। इसे ऐसे बनाया गया है ताकि अचानक बल के संपर्क में आने पर इसमें आग न लगे या विस्फोट न हो। बैटरी को -60 डिग्री सेल्सियस से 120 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी काम कर सकती है। कंपनी ने ऊर्जा स्रोत के रूप में निकल-63 आइसोटॉप का उपयोग करके परमाणु बैटरी बनाई, जो एक रेडियोधर्मी तत्व है। हीरे के सेमीकंडक्टर का उपयोग ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित करने के लिए किया गया। इसमें सिंगल-क्रिस्टल सेमीकंडक्टर 10 माइक्रोन मोटा है और दो कनवर्टर्स के बीच दो माइक्रोन निकल-63 की शीट रखी गई है। रेडियोधर्मी तत्व के क्षय होने पर जो ऊर्जा निकलती है, वह उपकरण को शक्ति प्रदान करने के लिए विद्युत धारा में परिवर्तित हो जाती है। चीन के अलावा यूरोप और अमेरिका के शोध संस्थान भी इसी तरह की परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। उपकरणों को चार्ज करने की आवश्यकता को दूर करके अभूतपूर्व तकनीक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में क्रांति ला सकती है। वैज्ञानिक परमाणु ऊर्जा के बारे में मुख्य चिंता रेडिएशन को लेकर जता रहे हैं। कंपनी ने कहा कि इसका उपयोग शरीर के अंदर चिकित्सा उपकरणों जैसे कॉक्लियर इम्प्लांट या पेसमेकर को बिजली देने के लिए किया जा सकता है। वहीं रेडियोधर्मी तत्व की लाइफ समाप्त होने के बाद कोई पर्यावरणीय खतरा नहीं है। हालांकि, बीटा विकिरण के जोखिम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया। दरअसल, निकेल-63 आइसोटोप बीटा विकिरण छोड़ता है और इसे बिजली में परिवर्तित करता है।