अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि कुछ राष्ट्र विरोधी अपने निहित स्वार्थों के लिए समाज को जाति, धर्म, भाषा, पुरुष-महिला, गांव-शहर के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने लोगों से उनके मनसूबों की गंभीरता को समझने और उन्हें हराने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। मोदी गुजरात के खेड़ा जिले के वडताल में स्वामीनारायण मंदिर की 200वीं वर्षगांठ समारोह को वर्चुअली संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए नागरिकों के बीच एकता और राष्ट्र की अखंडता महत्वपूर्ण है। साथ ही विकसित राष्ट्र के लिए आत्मनिर्भरता को भी महत्वपूर्ण बताया। संतों से लोगों को जोड़ने की अपील : प्रधानमंत्री ने स्वामीनारायण संप्रदाय के सभी संतों से अनुरोध किया कि भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में देश के प्रत्येक नागरिक को जोड़ें। कहा, जैसे आजादी के आंदोलन में एक शताब्दी तक समाज के भिन्न-भिन्न कोने से आजादी की ललक और आजादी की चिंगारी देशवासियों को प्रेरित कर रही थी, वैसी ही ललक और वैसी ही चेतना विकिसत भारत के लिए 140 करोड़ देशवासियों में हर पल होना जरूरी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि युवा, राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं और करेंगे। इसके लिए हमें सशक्त और शिक्षित युवाओं का निर्माण करना होगा। विकसित भारत के लिए हमारे युवा सशक्त होने चाहिए। कुशल युवा हमारी सबसे बड़ी ताकत बनेंगे। यह भी कहा कि कुशल भारतीय युवाओं की मांग भविष्य में कई गुना बढ़ेगी। भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ‘विकास भी, विरासत भी’ के मंत्र में विश्वास करती है। यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किए गए कुंभ का जिक्र करते हुए मोदी ने स्वामीनारायण संप्रदाय से आग्रह किया कि वे अन्य देशों के लोगों को इस धार्मिक समागम का महत्व समझाएं। कहा कि प्रयागराज में अगले साल जनवरी से फरवरी के बीच महाकुंभ का आयोजन होगा। स्वामीनारायण के मंदिर दुनिया भर में स्थित हैं। ऐसे में संतों से आग्रह करता हूं कि दुनिया के अपने प्रत्येक मंदिर से महाकुंभ में कम से कम 100 विदेशियों को लाने की कोशिश करें। मोदी ने कहा कि भगवान स्वामीनारायण हमारे सामने ऐसे समय में आए थे जब गुलामी के कारण हमारा देश कमजोर हो गया था। लोग इस स्थिति के लिए खुद को दोषी मानते थे। ऐसे समय में भगवान स्वामीनारायण और अन्य संतों ने हमारे स्वाभिमान को जगाया। हमें एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा दी और हमारी मूल पहचान को फिर से जीवंत किया।