लंदन। अंतरिक्ष यात्रा मनुष्य के शरीर को कई तरीके से प्रभावित करती है। अब वैज्ञानिकों ने आंखों के स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती हुई चिंता को उजागर किया है। यूनिवर्सिटी डी मॉन्ट्रियल के अध्ययन में सामने आया है कि 70% अंतरिक्ष यात्रियों के विजन में परिवर्तन होता है। इस स्थिति को स्पेसफ्लाइट-एसोसिएटेड न्यूरो-ओकुलर सिंड्रोम कहा जाता है। अंतरिक्ष मिशनों के लिए यह बड़ा खतरा पैदा करता है। शोधकर्ताओं ने 13 अंतरिक्ष यात्रियों की जांच की जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर कई महीने बिताए थे। उन्होंने कहा कि नेत्र संबंधी कठोरता में 33% की कमी आई, जिससे आंखें अधिक नाजुक हो गईं। आंखों के द्रव परिसंचरण में बदलाव आया। नेत्र संबंधी नाड़ी का आयाम 25% कम हुआ, जिससे रक्त प्रवाह प्रभावित हुआ। इन परिवर्तनों के कारण दृष्टि धुंधली हो सकती है और ऑप्टिक तंत्रिका में सूजन आ सकती है। कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष मिशन के बाद नए इलाज की भी आवश्यकता होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस सिंड्रोम के प्रभाव अस्थायी होते हैं। अधिकांश अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर लौटने के बाद सामान्य दृष्टि प्राप्त कर लेते हैं। अध्ययन शामिल 80% लोगों में लक्षण दिखाई दिए, लेकिन लेंस से उन्हें फायदा हुआ। हालांकि लंबे समय तक अंतरिक्ष की यात्रा से स्थिति बदतर हो सकती है। नासा और अन्य एजेंसियां समाधान खोजने के लिए काम कर रही हैं।