नई दिल्ली। शिशु आहार उत्पादों में चीनी की मात्रा की जांच होने की संभावना बढ़ गई है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस मामले में चिंता जताते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) से इसकी समीक्षा करने को कहा है। इसको लेकर एनसीपीसीआर ने एफएसएसएआई के सीईओ जी कमला वर्धन राव को पत्र लिखा है। आयोग ने एफएसएसएआई से मामले की जांच कर रिपोर्ट सात दिनों के भीतर देने को अनुरोध किया है।
एनसीपीसीआर ने सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा (13) के तहत निर्मित शिशु खाद्य उत्पादों में पाई जाने वाली चीनी सामग्री के बारे में मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लिया है। दरअसल, नेस्ले इंडिया ने दावा किया है कि उसने पिछले पांच वर्षों में भारत में शिशु आहार उत्पादों में चीनी में 30 प्रतिशत से अधिक की कमी की है। नेस्कैफे, सेरेलैक और मैगी जैसे उत्पाद बनाने वाली कंपनी ने उन खबरों के बीच यह स्पष्टीकरण दिया, जिसमें दावा किया गया था कि वह कम विकसित देशों में अधिक चीनी वाले उत्पाद बेच रही है। एफएसएसएआई को लिखे पत्र में एनसीपीसीआर ने कहा है कि शिशुओं की सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं के लिए जरूरी है कि शिशु आहार पोषण गुणवत्ता और सुरक्षा के सख्त मानकों को पूरा करें। इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एनसीपीसीआर ने खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण भारत सरकार से शिशु आहार उत्पादों में चीनी की व्यापक जांच करने को कहा है। पत्र में कहा गया है कि यह जांच का विषय है कि उल्लिखित कंपनी के उत्पाद प्रमाणित हैं या नहीं। साथ ही यह एफएसएसएआई के प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं या नहीं। वहीं, एनसीपीसीआर ने नियामक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एफएसएसएआई से आयोग को शिशु खाद्य उत्पादों के लिए मानक दिशा-निर्देश प्रदान करने की बात कही है।
नेस्ले के उत्पाद को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है, उसके अनुसार भारत सहित एशिया और अफ्रीका के देशों में बिकने वाले बच्चों के दूध और सेरेलेक जैसे फूड प्रोडक्ट्स में कंपनी अतिरिक्त शक्कर और शहद मिलाती है। स्विस एनजीओ, पब्लिक आई और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क (आईबीएफएएन) के निष्कर्षों के अनुसार, नेस्ले ने यूरोप के अपने बाजारों की तुलना में भारत सहित कम विकसित दक्षिण एशियाई देशों और अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में उच्च चीनी सामग्री वाले शिशु उत्पाद बेचे।