वाराणसी। टीएलयू
चातुर्मास की साधना से अर्जित ऊर्जा एवं शक्ति का प्रयोग संतों और सन्यासियों को राष्ट्रहित और सनातन धर्मावलम्बियों को एकजुट करने में करना चाहिए। उक्त बातें काशी सुमेरु पीठ के शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने वाराणसी में चातुर्मास पर आयोजित एक कर्यक्रम में सन्यासियों को संबोधित करते हुए कही।
रविवार को वाराणसी के डुमरांव बाग कॉलोनी स्थित काशी सुमेरु पीठ में चातुर्मास के समापन के अवसर पर संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। अस्सी सभागार में आयोजित दण्डी सन्यासियों की इस गोष्ठी में काशी सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि सन्यासियों को अपने चातुर्मास की साधना से अर्जित ऊर्जा को राष्ट्रहित में खर्च करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संन्यासी देेश भर में भ्रमण कर लोगों को राष्ट्रहित में जागरूक करने का प्रयास करें।
जगद्गुरू शंकराचार्य ने कहा कि सनातन धर्मावलम्बियों के अपने धर्म के प्रति उदासीन होने के कारण ही पूरे देश में तथाकथित विकास के नाम पर हमारे धर्मस्थलों को तोड़ा जा रहा है। यह एक साजिश है इसेेेे सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि सनातन धर्म कमजोर हुआ तो देश कमजोर होगा। जहाँ जहाँ सनातन धर्मावलम्बियों की संख्या कम हुई, वहाँ देश विरोधी गतिविधि बढ़ गई। इसलिए सनातन धर्म के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती ।
जगन्नाथपुरी धाम उड़ीसा के स्वामी अरूपानन्द गिरि ने तथाकथित विकास के नाम पर जगन्नाथपुरी के प्राचीन मन्दिरों को तोड़े जाने की चल रही कार्यवाही की घोर निन्दा करते हुए वहाँ की वर्तमान स्थिति की पूरी जानकारी दी। उन्होंने सभी सन्यासियों का आह्वान किया कि इस कुकृत्य के विरूद्ध समस्त सनातनियों को जागृत कर ब्यापक आन्दोलन के लिए तैयार करें। स्वामी बृज भूषण दास जी महाराज ने कहा कि जहाँ भी सनातनधर्मी अपने धार्मिक कार्य के लिए सामूहिक रूप से एकत्रित होते हैं, वहाँ अन्य तथाकथित धर्म के लोग उसमें अड़ंगा डालने की कोशिश करते हैं।
गोष्ठी में स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ महाराज, चौसट्ठी मठ के स्वामी प्रकाश आश्रम महाराज, समाधि मठ के स्वामी राजेश आश्रम महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त कििये। सम्मेलन का संचालन स्वामी बृज भूषण दास जी महाराज ने किया, गोष्ठी में सैकड़ों की संख्या में दण्डी सन्यासी एवम् विद्वान उपस्थित थे |
गोष्ठी के पश्चात् भण्डारा सम्पन्न हुआ, तत्पश्चात् पूज्य जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज के पावन नेतृत्व में सीमोन्लंघन कर सन्यासियों ने अपने चातुर्मास व्रत समापन किया।