रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि शव के साथ दुष्कर्म सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता, लेकिन भारत में दंड संहिता के तहत इसे बलात्कार नहीं माना जाता है। हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर को दिए गए अपने इस आदेश के साथ उन नौ वर्षीय दलित लड़की की मां की अपील को खारिज कर दिया, जिसका दो व्यक्तियों ने दुष्कर्म किया था और हत्या कर दी थी। सितंबर 2023 में ट्रायल कोर्ट ने 23 वर्षीय नितिन यादव को 18 नवंबर, 2018 को अपने घर में लड़की के साथ दुष्कर्म और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दूसरे आरोपी नीलकंठ ने शव को पास की पहाड़ी पर ले जाने में मदद की, जहां उसे दफनाया गया था। ऐसे में सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर उसे सात साल जेल की सजा सुनाई गई। नीलकंठ पर शव के साथ दुष्कर्म के आरोप लगे थे। पर ट्रायल कोर्ट ने उसे दुष्कर्म के आरोपों से यह कहते हुए बरी कर दिया कि लड़की मर चुकी थी। इसके बाद पीड़िता की मां ने नीलकंठ के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने शव के साथ दुष्कर्म की भयावह प्रकृति को स्वीकार किया, लेकिन एक महत्वपूर्ण कानूनी सीमा की ओर इशारा किया। उन्होंने निचली अदालत के तर्क और निष्कर्षों से सहमति जताई। हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक पीड़िता की मां की अपील का सवाल है, कोई संदेह नहीं है कि नीलकंठ का अपराध सबसे जघन्य अपराधों में से एक है, लेकिन मामले का तथ्य यह है कि आज की तारीख में, उक्त आरोपी को आईपीसी की धारा 363, 376 (3), पोक्सो अधिनियम और 1989 के अधिनियम की धारा 3(2)(वी) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि दुष्कर्म एक मृत शरीर के साथ किया गया था। उपरोक्त धाराओं के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के लिए पीड़िता का जीवित होना आवश्यक है।