नई दिल्ली। टीएलआई
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को जेल की नहीं जमानत की जरूरत है। हाईकोर्ट में मादक पदार्थ के आरोप में संभावित गिरफ्तारी का सामना कर रही सात महीने की एक गर्भवती महिला को अग्रिम जमानत पर सुनवाई हो रही थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालतों को महिलाओं की मातृत्व की गरिमा का सम्मान करना चाहिए।
न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा ने अपने आदेश में अग्रिम जमानत की हिमायत की और जेल में प्रसव की दिक्कतों से बचाने के लिए महिला की सजा निलंबित कर दी। कोर्ट ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को जेल की नहीं, जमानत की जरूरत है। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने सवाल किया कि कारावास को स्थगित न करने से राज्य और समाज को क्या फर्क पड़ेगा? सजा की तामील के लिए इतनी जल्दबाजी क्या है? अगर जेल की सजा टल गई तो आसमान नहीं गिर जाएगा। अदालत ने कहा कि यहां तक कि अत्यधिक गंभीर अपराध और आरोप बेहद गंभीर होने की स्थिति में भी वे अस्थायी जमानत या सजा के निलंबन की पात्र हैं, जिसे प्रसव के एक साल बाद तक बढ़ाया जा सकता है। एकल न्यायाधीश की पीठ ने 16 पन्ने के अपने फैसले में कहा कि जेल में जन्म से बच्चे से उसके जन्म स्थान के बारे में पूछे जाने पर उसके मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ सकता है। याचिकाकर्ता मोनिका पर आरोप है कि उसने अपने पति के साथ साजिश रची थी, जिसके घर से पुलिस ने 259 ग्राम डायसेटाइलमॉर्फिन (हेरोइन) और 713 ग्राम ट्रामाडोल युक्त गोलियां बरामद की थीं। उसने पहले कांगड़ा के विशेष न्यायाधीश के समक्ष जमानत याचिका दायर की थी लेकिन 19 जनवरी को उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी। इससे पहले उच्च न्यायालय ने 23 फरवरी को उसकी अंतरिम जमानत मंजूर की थी।