प्रदूषण से गर्भ में पल रहे बच्चे का दिमाग हो सकता है कमजोर

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नई दिल्ली। प्रदूषण न सिर्फ इसमें सांस लेने वालों की सेहत खराब कर रहा है बल्कि इससे गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे अजन्मे शिशु का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है। प्रदूषण से कम वजनी बच्चे पैदा होने, गर्भपात होने, कम विकसित दिमाग और बच्चों में ऑटिज्म जैसे न्यूरो विकार होने का खतरा बढ़ जाता है। एम्स दिल्ली ने दुनियाभर में गर्भवती महिला के प्रदूषण में रहने से उसके शिशु पर होने वाले प्रभावों पर दुनियाभर में हुए शोधों पर एक नया शोधपत्र प्रकाशित किया है। एम्स के बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर संदीप करमाकर इसके प्रमुख लेखक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2500 ग्राम से कम वजन के पैदा होने वाले बच्चों को कम वजनी बच्चा माना जाता है और बाद में यह उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। एम्स के शोध पत्र में कनाडा के प्रोफेसर डेविड एम स्टीव की टीम के एक अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि गर्भवती महिला अगर पूरे गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (एयर क्वालिटी इंडेक्स 10) पर सांस लेती है तो उसे शिशु का वजन 23.4 ग्राम कम देखा गया है। इसी तरह पीएम 10 का स्तर प्रति 20 ग्राम प्रति घन मीटर बढ़ने पर गर्भवती महिला के शिशु का वजन 16.8 ग्राम कम होता है। एम्स ने एक अन्य अध्ययन के हवाले से बताया कि सप्ताहभर में 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर नाइट्रोजन डाईऑक्साइड में सांस लेना गर्भपात का खतरा 16 फीसदी बढ़ा देता है। नाइट्रोजन डाईऑक्साइड ईंधन के जलने से उत्पन्न होता है, विशेष रूप से डीजल वाहनों में। इस अध्ययन में 1300 से अधिक गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया था। पूरे समय में सात दिनों का औसत नाइट्रोजन डाईऑक्साइड स्तर 34 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। शोधकर्ताओं ने पाया कि नाइट्रोजन डाईऑक्साइड प्रदूषण में 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि गर्भपात के जोखिम में 16 फीसदी की वृद्धि से जुड़ी थी।गर्भ में पल रहे बच्चों तक प्रदूषण पहुंचने से उनका दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। अध्ययन में पाया गया है कि इससे जब वे पैदा होते हैं तो उन्हें ऑटिज्म का खतरा और अल्जाइमर जैसी न्यूरो की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। गर्भ होने के बाद पहले तीन महीना जब बच्चा गर्भ के अंदर होता है तब वह वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। मां जब सांस लेती है तो वायु में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर उसके शरीर में पहुंचते हैं। ये इतने महीन होते हैं कि कुछ फेफड़ों से चिपक जाते हैं, कुछ खून में घुल जाते हैं और कुछ प्लेसेंटा तक भी पहुंच जाते हैं। प्लेसेंटा गर्भ के पास ही होता है जिससे बच्चे को पोषण मिलता है। पार्टिकुलेट मैटर या प्रदूषण के कण प्लेसेंटा में इकट्ठे हो जाते हैं और यहां एक तरह से सूजन पैदा हो जाती है। जब ये अप्राकृतिक चीज प्लेसेंटा पर पहुंचती है तो वहां व्हाइट ब्लड सेल्स बढ़ जाते हैं। वहां पर जमावट हो जाती है और बच्चे तक रक्त प्रवाह में रुकावट होने लगती है। इसी रक्त से बच्चे को पोषण मिलता है रक्त कम पहुंचने से बच्चे का विकास रुक जाता है, वह शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग हो सकता है उसका दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता।

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