अयोध्या। अर्पणा पांडेय
पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में भागवान राम षोडशोपचार पूजन किया। फिर चांदी के कमल से विग्रह का अर्चन किया गया। मुख्य आचार्य और आचार्य सुनील दीक्षित ने प्रधानमंत्री मोदी से प्राण प्रतिष्ठा पूजन संपन्न कराया। पीएम ने राम के विग्रह को दंडवत प्रणाम किया। पीएम मोदी ने मुख्य आचार्य समेत संरक्षक विश्वेश्वर द्रविड़ और गणेश्वर द्रविड़ से आशीर्वाद लिया। पीएम ने कहा कि हमारे राम आ गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह में कहा कि राम मंदिर की भूमि पूजन के बाद से प्रतिदिन पूरे देश में उमंग और उत्साह बढता ही जा रहा था। निर्माण कार्य देख देशवासियों में हर दिन नया विश्वास पैदा हो रहा था। आज हमें सदियों के धैर्य की धरोहर मिली है। आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। आज दिन, दिशाएं और सब दिव्यता से परिपूर्ण है। यह सामान्य समय नहीं है। उन्होंने कहा कि यह काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रही स्मृति रेखाएं हैं। हम सब जानते हैं कि जहां राम का काम होता है, वहां पवन पुत्र हनुमान होते हैं, इसलिए मैं रामभक्त हनुमान व हनुमान गढ़ी को प्रणाम करते हुए माता जानकी सहित सभी को नमन करता हूं। पावन अयोध्या व सरयू को प्रणाम करता हूं। दैवीय अनुभव कर रहा हूं।
दिव्य आत्माएं व दैवीय विभूतियां हमारे आसपास हैं। सभी दिव्य चेतनाओं को नमन किया। उन्होंने कहा कि आज प्रभु से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ और त्याग तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी। हम सदियों तक यह कार्य कर नहीं पाए। आज वो कमी पूरी हुई है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि प्रभु राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे। उन्होंने कहा कि प्यारे देशवासियों त्रेतायुग में राम के आगमन पर पूज्य संत तुलसीदास ने लिखा कि प्रभु का आगमन देख समस्त देशवासी हर्ष से भर गए। जो आपत्ति आई थी उसका अंत हो गया। उस कालखंड में वह वियोग सिर्फ 14 साल का था, इस युग में सैकड़ों वर्षों का वियोग देशवासियों ने सहा है। कई पीढ़ियों ने वियोग सहा है। संविधान की पहली प्रति में भगवान राम विराजमान हैं। संविधान में राम के होने के दशकों बाद भी प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। उन्होंने भारत की न्यायपालिका का आभार व्यक्त किया जिसने न्याय की लाज रख ली। उन्होंने कहा कि प्रभु राम तो भारत की आत्मा के कण-कण से जुड़े हैं। हम भारत में कहीं भी किसी की अंतरआत्मा को छुएंगे तो एकत्व की अनुभूति होगी। यही भाव सब जगह मिलेगा।
इससे अधिक देश को समायोजित करने वाला सूत्र और क्या हो सकता है। मुझे देश के कोने-कोने में अलग-अलग भाषाओं में रामायण सुनने का अवसर मिला है। राम को परिभाषित करते हुए ऋषियों ने कहा है कि जिसमें रम जाएं वही राम हैं। राम पर्वत से लेकर परंपराओं में समाए हुए हैं। हर युग में लोगों ने राम को जिया है। सभी ने अपने अपने शब्दों में राम को अभिव्यक्त किया है। यह रामरस जीवन प्रवाह की तरह निरंतर बहता रहता है। प्रचीन काल से भारत के लोग रामरस का आचमन करते रहते हैं। राम के आदर्श व शिक्षाएं सब जगह एक समान हैं। देश उन्हें याद कर रहा है, जिनके कारण हम इस शुभ दिन को देख रहे हैं। अनगिनत रामभक्तों, कारसेवकों और संतों के हम ऋणी हैं। यह उत्सव का क्षण तो है ही यह क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता की बोध का भी है। यह सिर्फ विजय का नहीं विनय का भी अवसर है।