शहर में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों को ही सरकारी स्कूल पसंद नहीं

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हल्द्वानी। भले ही सरकारी स्कूलों में दाखिले बढ़ाने के लिए प्रवेशोत्सव मनाया जाता है और एमडीएम व पोषाहार के नाम पर हर साल करोड़ों का बजट खर्च किया जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। न तो प्रवेशोत्सव और न ही एमडीएम, छात्रसंख्या बढ़ाने में काम आ रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे के वार्षिक मॉड्यूलर सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है। सर्वे के अनुसार उत्तराखंड में शहरों के केवल 25.4 फीसदी बच्चे ही प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूलों से ले रहे हैं। शहरी क्षेत्रों के लगभग 74.5 फीसदी बच्चों को उनके अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाया है।
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय की यह 79वीं रिपोर्ट जुलाई 2022 से जून 2023 के आंकड़ों पर आधारित है। अक्तूबर 2024 में जारी इस रिपोर्ट में लोगों की शिक्षा, इंटरनेट, मोबाइल, सार्वजनिक परिवहन आदि तक पहुंच के बारे में जानकारी दी गई है। विद्यालयी शिक्षा उत्तराखंड के संयुक्त निदेशक रहे शिक्षाविद जे.एस. ह्यांकी का मानना है कि गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में संसाधनों और शिक्षकों की कमी हमेशा से रही है। दो शिक्षकों से ही काम चलाना पड़ता है। पढ़ाई के अलावा कई अन्य कार्य भी शिक्षकों को करने पड़ते हैं। वहीं प्राइवेट स्कूलों में संसाधनों और शिक्षकों की कमी नहीं होती। इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने लगे हैं। सरकार को चाहिए कि वह प्राथमिक शिक्षा में शिक्षक-छात्र अनुपात के मानकों में बदलाव करे और संसाधन बढ़ाए।
आंकड़ों के अनुसार प्राइवेट स्कूलों का प्रभाव अब धीरे-धीरे गांव और कस्बों में भी बढ़ने लगा है। हालांकि, शहरों की तुलना में गांवों में प्राइवेट स्कूलों की संख्या अभी भी बहुत कम है। सर्वे के अनुसार उत्तराखंड के गांवों में छह से दस साल की उम्र के 92.2 फीसदी बच्चे किसी न किसी स्कूल में कक्षा एक से पांचवीं तक पंजीकृत हैं। इनमें से 59.4 फीसदी बच्चे सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जबकि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वालों की संख्या करीब 40 फीसदी के आसपास ही है।

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