नई दिल्ली। विपक्ष के जबरदस्त विरोध और सत्तापक्ष की मेजों की थपथपाहट के बीच केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ से संबंधित विधेयकों को लोकसभा में पेश कर दिया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक सदन में पेश किए। इसके साथ उन्होंने विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव किया। सदन में दोनों विधेयकों का विरोध करते हुए विपक्षी पार्टियों ने इन्हें संविधान की मूल भावना और संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। उन्होंने इसे तानाशाही की तरफ ले जाना वाला कदम करार देते हुए सरकार से विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का आग्रह किया। विधेयकों का एनडीए गठबंधन में शामिल टीडीपी और शिवसेना ने समर्थन किया, पर जद(यू) और रालोद का कोई सदस्य नहीं बोला। कानून मंत्री ने दोनों विधेयकों को लोकसभा में पुरस्थापित करने के लिए रखा। इस पर विपक्षी दलों ने मतविभाजन की मांग की। इसके बाद विधेयक पेश किए जाने के पक्ष में 269 और विरोध में 198 वोट पड़े। नए संसद भवन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मतविभाजन हुआ था, इसलिए कई सदस्यों को परेशानी हुई। इसके चलते कुछ सदस्यों ने पर्ची से जरिये अपने वोट का इस्तेमाल किया। विधेयकों पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ये जब केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा के लिए आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंशा जताई थी कि इन्हें जेपीसी को भेजना चाहिए। इसके बाद कानून मंत्री ने विधेयकों को जेपीसी में भेजने का प्रस्ताव किया। कहा कि सरकार का मत है कि इन्हें जेपीसी के विचार के लिए भेजा जाए। कानून मंत्री मेघवाल ने विपक्षी दलों की तरफ से उठे सवालों के जवाब दिए। उनकी इस दलील को खारिज कर दिया कि ये विधेयक संसद की विधायी क्षमता से परे हैं। कहा कि संविधान का अनु्च्छेद 368 संसद को ऐसे संशोधन की शक्ति देता है। संविधान का अनुच्छेद 327 संसद को विधानमंडलों के चुनाव के संदर्भ में अधिकार देता है। कहा कि इन विधेयकों से न तो संसद की शक्ति कम होती है और न ही राज्यों की विधानसभा की शक्ति में किसी तरह की कोई कटौती होती है। डॉ. आंबेडकर के एक कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के संघीय ढांचे को कोई नहीं बदल सकता।