नया वक्फ कानून मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता : केंद्र

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि नया वक्फ कानून किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है। केंद्र ने कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए इसे खारिज करने की मांग की। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव शेरशा सी शेख मोहिद्दीन के जरिए 1332 पन्नों का जवाब दाखिल किया गया। केंद्र ने शीर्ष अदालत से नए वक्फ कानून पर पूरी तरह से या आंशिक रूप से रोक नहीं लगाने का आग्रह किया। सरकार ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिक वैधता अनुमानित है और अदालत द्वारा इस पर किसी तरह की रोक मुस्लिम समुदाय के लोगों के अधिकारों पर प्रतिकूल परिणाम होगा। सरकार ने कानून की वैधता को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं में संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों के इर्द-गिर्द ‘शरारतपूर्ण और झूठी धारणा’ फैलाने के बारे में भी इशारा किया है। केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को शीर्ष अदालत को यह भरोसा दिया था कि मामले की अगली सुनवाई 5 मई तक न तो केंद्रीय वक्फ परिषद या बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगी और न ही उपयोगकर्ता द्वारा घोषित वक्फ की संपत्तियों को गैर अधिसूचित करेगी। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र के इस बयान को आदेश में दर्ज करते हुए, नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सरकार ने 8 अप्रैल तक वक्फ बाय यूजर यानी उपयोगकर्ता द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों के आवश्यक पंजीकरण पर तर्कों का भी विरोध किया। सरकार ने कहा कि यदि अंतरिम आदेश द्वारा प्रावधान में हस्तक्षेप किया गया, तो यह न्यायिक आदेश द्वारा विधायी व्यवस्था बनाने के जैसा होगा। सरकार ने अपने हलफनामे में उन दलीलों का खंडन किया जिसमें कहा गया था कि वक्फ कानून में बदलाव के कारण केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में मुस्लिम अल्पमत में हो सकते हैं। सरकार ने कहा कि कुल 22 में से केवल चार गैर-मुस्लिम सदस्य केंद्रीय वक्फ परिषद का हिस्सा हो सकते हैं। जबकि राज्यों के वक्फ बोर्डों में, 11 सदस्यों में से अधिकतम तीन सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने की संभावना है (यदि पदेन सदस्य गैर-मुस्लिम होता है)। सरकार ने कहा कि जब विधायिका ने एक कानून बनाया है, जिसे संवैधानिक माना जाता है, तो इसे बदलना या इस पर रोक लगाना अनुचित होगा। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि कानून में यह स्थापित सिद्धांत है संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी। सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है। इसका मतलब है कि अगर किसी कानून को अदालत में चुनौती दी जाती है, तो अदालत सामान्यतः यह मानकर चलती है कि वह संवैधानिक है और उसे केवल तभी असंवैधानिक ठहराया जाता है, जब वह स्पष्ट रूप से संविधान का उल्लंघन करता हो। सरकार ने कहा कि प्रावधान में बदलाव के जरिए संशोधन अधिनियम न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता लाता है। सरकार ने कहा कि संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर संशोधन किया है। ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि वक्फ जैसी धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन इस तरह से हो कि उनमें आस्था रखने वालों का और बड़े पैमाने पर समाज का भरोसा बना रहे और धार्मिक स्वायत्तता का हनन न हो। केंद्र ने अपने जवाब में, शीर्ष अदालत को बताया कि 2013 से अब तक वक्फ संपत्तियों में चौंकाने वाली बढ़ोतरी हुई है। केंद्र ने अपने हलफनामे में निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए वक्फ के प्रावधानों के ‘कथित दुरुपयोग’ का जिक्र किया। केंद्र ने कहा कि मुगल काल से पहले, देश के स्वतंत्र होने से पहले और बाद में, कुल वक्फ संपत्तियां की संख्या 18,29,163.896 एकड़ थी। सरकर ने कहा कि 2013 के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि चौंकाने वाली बात यह है कि वक्फ भूमि में 2013 के बाद 20,92,072.536 एकड़ की वृद्धि हुई है।

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