नई दिल्ली। अर्पणा पांडेय
जलवायु को भी वायु प्रदूषण प्रभावित कर रहा है। यही हाल रहा तो मानसूनी बारिश पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। आईआईटी दिल्ली के एक शोध में यह दावा किया गया है।शोध रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते मानसूनी बारिश में 10-15 फीसदी की कमी हो सकती है।
भारत में पिछले दो दशकों में वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि हुई है। द स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2019 में पीएम 2.5 के कारण 9 लाख 80 हजार मौतें हुई हैं। सेंटर फॉर एटमोस्फियरिक साइंसेज़, आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दिलीप गांगुली के अनुसार वायु प्रदूषण से पूरे देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में 10-15 फीसदी की कमी आने की संभावना है। इस बीच, कुछ स्थानों पर 50 प्रतिशत तक कम बारिश भी हो सकती है। यह मानसून की गतिशीलता को भी प्रभावित करेगा। इसके शुरुआत में देरी हो सकती है। वायु प्रदूषण भूमि द्रव्यमान को आवश्यक स्तर तक गर्म नहीं होने देता है। प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण भूमि का ताप धीमी गति से बढ़ता है। यदि सतह का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस है लेकिन वायु प्रदूषण के कारण यह 38 या 39 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो जाएगा। ‘एंथ्रोपोजेनिक एरोसोल्स एंड द वीकनिंग ऑफ द साउथ एशियन समर’ नाम की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ वायु प्रदूषण मानसून को अनियमित वर्षा पैटर्न की ओर धकेल रहा है। इसके चलते मानसून अधिक परिवर्तनशील हो रहा है। यानी एक वर्ष सूखा पड़ सकता है और उसके बाद अगले वर्ष बाढ़ आ सकती है। यह अनियमित व्यवहार वर्षा में समग्र कमी की तुलना में अधिक चिंताजनक है क्योंकि यह अनिश्चितता को बढ़ाता है और इन परिवर्तनों से जूझने के लिए अलग से क्षमता विकसित करनी होगी। वैज्ञानिकों के अनुसार धूलकणों के वर्षा पर दो प्रकार के प्रभाव होते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष प्रभाव को विकिरण प्रभाव कहा जा सकता है जहां धूलकण सीधे विकिरण को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकते हैं। जबकि वर्षा पर अप्रत्यक्ष प्रभाव की दूसरी घटना में धूलकण सौर विकिरण को अवशोषित करते हैं और यह अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करता है और बादल और वर्षा गठन प्रक्रियाओं को बदलता है। हालांकि, दोनों प्रकार के एरोसोल अंततः पृथ्वी की सतह को ठंडा कर देते हैं, जिससे वायुमंडलीय स्थिरता बढ़ जाती है और कंवेक्शन (संवहन) क्षमता घट जाती है।