मोबाइल बना रहा दिमाग को गुलाम, रिश्तों में बढ़ रहीं तल्खी

अंतरराष्ट्रीय

नई दिल्ली। देव
मोबाइल बार-बार देखने या बिना जरूरत सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करने से आपका दिमाग डिजिटल का गुलाम बनता जा रहा है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के वैज्ञानिकों ने शोध में इसका खुलासा हुआ है। दुनिया के हर दस में 9 व्यक्ति बिना मतलब के अपने मोबाइल को बार-बार चेक करता है। इसका गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। मोबाइल लगातार जांच करने से दिमाग धीरे-धीरे डिजिटल पर निर्भर होता जाता है। लगातार स्क्रॉल से काम के प्रदर्शन पर भी असर पड़ता है। साथ ही नींद में भी कमी आती है जिसका स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं रिश्तों में तल्खी बढ़ती है। इससे मन में नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होता है। इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों ने एक बार फोन चेक करने के बाद दस मिनट तक मोबाइल छोड़ने की सलाह दी है।
शोध में दावा किया गया है कि आप किराने की दुकान पर कतार में खड़े हैं या लिफ्ट का इतंजार कर रहे हैं। आपके पास वहां रुकने के लिए एक मिनट से अधिक का समय नहीं है। फिर भी आप अपना फोन निकालते हैं और बिना सोचे-समझे सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करना शुरू कर देते हैं। यही नहीं आप किसी पार्टी या कार्यक्रम में गए हैं। वहां अकेले हैं या अजीब महसूस कर रहे हों। तो आप अपने दिमाग को शांत करने के लिए तुरंत फोन निकालकर देखने लगेंगे। शोध में कहा गया है कि इन दोनों घटनाओं से स्पष्ट है कि दुनिया में हर दस में 9 व्यक्ति बिना मतलब के अपने फोन को चेक कर रहा है। ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के वैज्ञानिकों ने शोध में बताया कि लोग बिना सोचे फोन बार-बार देख रहे हैं। उनके अनुसार, सिर्फ 11 फीसदी लोग स्मार्टफोन देखने का काम किसी सूचना के जवाब में करते हैं। वहीं 89 फीसदी बिना किसी इरादे या सोच के फोन को स्क्रॉल करने में जुटे हैं। इस स्थिति में विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हर 10 सेकंड में फोन चेक करने की आदत है तो उसके लिए शुरू में 10 मिनट तक फोन छोड़ने की आदत को अपनाएं। समय के साथ धीरे-धीरे दिमाग को स्थिर करने पर यह अवधि बढ़ाते रहे। विशेषज्ञों के मुताबिक, फोन के बिना रहने की आदत डालने की जरूरत है। ताकि शरीर और मन को आराम मिल सके। कई अध्ययनों में पाया गया है कि जब व्यक्ति के पास फोन होता है तो भले ही वह कुछ न कर रहा हो, लेकिन ध्यान भटकाने के लिए या जांच करने में उकसा सकता है। विशेषज्ञों ने बताया कि कई अध्ययन में पता चला है कि अचानक डिजिटल डिटॉक्स (गैजेट्स से दूर होना) इंसान के मन में चिंता पैदा कर सकता है। इसके लिए शुरू-शुरू में कम समय के लिए फोन छोड़ने की आदत बनाएं। समय के साथ यह अवधि एक घंटे तक बढ़ाएं। इस दौरान अपने मित्र या परिवार के लोगों को समय दें। जैसे-जैसे डिवाइस के बिना रहने के आदी हो जाएंगे, फोन की तरफ खिंचाव कम होता जाएगा। फोन को कितना इस्तेमाल करना है, इसको लेकर अपने में ही जागरूकता पैदा करना जरूरी है। ऐसे में स्मार्टफोन का उपयोग कैसा महसूस कराता है, इसको लेकर खुद से सवाल पूछें। जैसे किसी वीडियो या रील्स को देखते वक्त एक पल के लिए खुद जाने कि इस व्यवहार के पीछे क्या कारण है। क्या यह वीडियो देखना जरूरी है या जरूरी काम को टालने के लिए यह काम कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर यह याद रहे कि स्मार्टफोन के उपयोग से बोरियत बढ़ सकती है। इससे स्क्रीन समय को कम करने में कोशिश हो सकती है। फोन को महरम की जगह बैसाखी के तौर पर सोचा जाए तो दिमाग में बदलाव होगा और फोन की तरफ झुकाव कम हो सकता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का उपयोग मनोवैज्ञानिक तौर पर नुकसान पहुंचाता है। लोग अपने स्क्रीन समय को लेकर खुद को कोसते रहते हैं। शोध में 60 फीसदी वयस्कों और 30 साल से कम उम्र के 80 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने फोन पर बहुत ज्यादा समय दे रहे हैं। दरअसल, जब कोई काम नहीं रहता है तो बिजी रहने के लिए फोन चेक करने लगते हैं। इसके बाद समय खराब होने पर दोषी महसूस करते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि अधिक प्लन-इन दुनिया में लगातार सूचना के इतने आदी हो गए हैं कि जब कुछ भी नहीं कर रहे होते हैं तो असहज होने लगते हैं। ऐसे में फोन इस तरह की असुविधा को राहत देने का कार्य करता है। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई बच्चा सुरक्षित महसूस करने के लिए किसी खिलौने के चारों तरफ घूमता है, वैसे ही वयस्क फोन की निरंतर जांच से राहत महसूस करते हैं। वह जानबूझकर अपने डिजिटल पेसिफायर का सहारा लेते हैं।

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