नई दिल्ली। देव
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बुधवार को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल की आलोचना करते हुए इसे एक ‘स्टंट’ करार दिया। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी, निर्यात में गिरावट और बचत में कमी के साथ ‘मेक इन इंडिया’ पर सरकार के शानदार विज्ञापन इसकी भारी विफलताओं को छुपा नहीं सकते।
खरगे ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ स्टंट के 10 साल ने भारत के विनिर्माण क्षेत्र में ब्रेक लगा दिया है। 10 साल पहले मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ का नारा गढ़ा और आत्मनिर्भर भारत बनाने का दावा किया। भाजपा के उच्च प्रचार के विपरीत सरकार की फ्लॉप नीति पहलों के कारण भारत का विनिर्माण क्षेत्र ‘डी-इंडस्ट्रियलाइज्ड’ हो गया है। उन्होंने पोस्ट में कुछ प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित करते हुए दावा किया कि देश विनिर्माण क्षेत्र में काफी पिछड़ गया है। उन्होंने भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पीछे छोड़ने वाले पांच प्रमुख तथ्य भी गिराए। खरगे ने ये पांच तथ्य सामने रखे… 2014-15 और 2023-24 के बीच विनिर्माण क्षेत्र की औसत वृद्धि दर सिर्फ 3.1 प्रतिशत (भाजपा-राजग) है, जबकि 2004-05 और 2013-14 के बीच औसत वृद्धि दर 7.85 प्रतिशत (कांग्रेस-यूपीए) थी। कांग्रेस-यूपीए शासन के दौरान कारखानों में कर्मचारियों की संख्या में सालाना 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मोदी सरकार के तहत यह वृद्धि दर घटकर सिर्फ 2.8 प्रतिशत रह गई। 2011-12 और 2022 के बीच भारत के विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार में न्यूनतम वृद्धि देखी गई, जो छह करोड़ से बढ़कर मात्र 6.3 करोड़ श्रमिकों तक पहुंची। सालाना तीन लाख नौकरियों का यह मामूली इजाफा अपर्याप्त है, क्योंकि हर साल 1.5 करोड़ युवा कार्यबल में प्रवेश करते हैं। एनएसओ के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार का हिस्सा सभी श्रमिकों (2011-12) का 12.6 प्रतिशत था। यह घटकर 10.9 प्रतिशत (2020-21) हो गया, फिर थोड़ा सुधार के साथ 11.6 प्रतिशत (2021-22) हो गया। केंद्र की नीतियों के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा अब तक के सबसे निचले स्तर 12.83 प्रतिशत (2023) पर पहुंच गया है। कांग्रेस-यूपीए के दौरान यह 15.25 प्रतिशत (2013) था। कई क्षेत्रों में पीएलआई योजनाएं बुरी तरह विफल रहीं। उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल, एडवांस केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी, कपड़ा उत्पाद, विशेष इस्पात और चिकित्सा उपकरण जैसे क्षेत्र दावा किए गए परिणाम देने में विफल रहे। साल-दर-साल केंद्र सरकार ने लाभ कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों की हिस्सेदारी भी करीबी दोस्तों को बेच दी, जिससे हमारे सार्वजनिक क्षेत्र की रीढ़ टूट गई है। रिक्त सरकारी नौकरियों को भरने के बजाए सरकार ने 5.1 लाख पद खत्म कर दिएं। पीएसयू में आकस्मिक और अनुबंध भर्ती में 91 फीसदी की भारी वृद्धि हुई है। एससी, एसटी, ओबीसी पदों में 1.3 लाख (2022-23) की कमी आई है। कुल मिलाकर देश के कारखानों में 40 फीसदी संविदा कर्मचारी हैं (2021-22)। यह कांग्रेस-यूपीए के दौरान सिर्फ पांच फीसदी (2013-14) था।