नई दिल्ली, अर्पणा पांडेय।
जलवायु संकट के स्वास्थ्य पर पड़नेवाले प्रभावों से निपटने के लिए शहर तैयार नहीं हैं। पूरी दुनिया में एक तिहाई से भी कम शहरों में कोई योजना है। येल यूनिवर्सिटी और रेसिलएंट सिटीज नेटवर्क की ओर से जारी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार शहरों में रहनेवाले लोगों पर खतरा सबसे अधिक है क्योंकि जनसंख्या के अधिक घनत्व के कारण यहां बीमारियां तेजी से फैलती हैं।
रॉकफेलर फाउंडेशन की ओर से भारत सहित 52 देशों के 118 शहरों पर यह सर्वे किया गया है। इसमें भारत से नई दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता जैसे बड़े शहर शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 70% शहरों ने जलवायु से संबंधित स्वास्थ्य खतरों को पहचाना है। 90% ने अधिक लोगों ने बताया कि बाढ़, गर्मी, बीमारियों से आर्थिक नुकसान हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भीषण गर्मी से हर साल लगभग पांच लाख लोगों की जान जाती है। जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को खतरा अधिक हैं। अत्यधिक बारिश और बढ़ते तापमान मलेरिया, हैजा और डेंगू के प्रकोप को बढ़ावा दे रहे हैं। ये बीमारियां नए क्षेत्रों में फैल रही हैं। जंगल की आग से होने वाले वायु प्रदूषण से कैंसर, हृदय रोग जैसी बीमारियां हो रही हैं। रॉकफेलर फाउंडेशन के कार्यकारी उपाध्यक्ष एलिजाबेथ यी ने कहा कि न्यू यॉर्क से लेकर नैरोबी तथा बोगोटा से लेकर बैंगलोर तक दुनिया भर के शहर जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते स्वास्थ्य खतरों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में दुनियाभर के सात शहरों का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने जलवायु संकट के कारण फैल रही बीमारियों पर रोक लगाने के लिए बेहतरीन काम किया। इसमें बेंगलुरु भी शामिल है। 2023 में कर्नाटक में एक दशक में सबसे अधिक डेंगू के मामले दर्ज किए गए थे। बेंगलुरु में डेंगू के प्रकोप का पता लगाने के लिए एआई मॉडलिंग का उपयोग किया गया। इससे पूर्वानुमान लगाया जा सका, इस आधार पर उन इलाकों में बचाव के उपाय किए गए। इसके अलावा डेंगू से लड़ने में रियो डी जेनेरो, हीटवेव से लड़ाई में ढाका ने मिसाल पेश की है।