भारत ने नए जलवायु वित्त समझौते को किया खारिज

अंतरराष्ट्रीय

बाकू। भारत ने रविवार को ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए सालाना 300 अरब अमेरिकी डॉलर जलवायु वित्त पैकेज को खारिज कर दिया। भारत ने इसे बहुत कम और अनुचित करार दिया है। ग्लोबल साउथ देस जलवायु परिवर्तन से निपटले के लिए पिछले तीन साल से 1.3 लाख करोड़ डॉलर की मांग कर रहे हैं। ‘ग्लोबल साउथ’ से अर्थ दुनिया के कमजोर या विकासशील देशों से है। आर्थिक मामलों के विभाग की सलाहकार चांदनी रैना ने भारत की ओर से बयान देते हुए कहा कि उन्हें समझौते को अपनाने से पहले अपनी बात नहीं रखने दी गई जिससे प्रक्रिया में उनका विश्वास कम हो गया है। उन्होंने कहा, हमने प्रेसीडेंसी और सचिवालय को सूचित किया था कि हम किसी भी निर्णय से पहले बयान देना चाहते हैं,लेकिन यह सभी ने देखा कि यह सब कैसे पहले से तय करके किया गया। हम बेहद निराश हैं। पार्टियों को बोलने से रोकने और अनदेखा करने की कोशिश करना यूएनएफसीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन) प्रणाली के अनुरूप नहीं है। हम चाहते हैं कि आप हमारी बात सुनें और इस स्वीकृति पर हमारी आपत्तियों को भी सुनें। हम इस पर पूरी तरह से आपत्ति करते हैं। रैना ने जोर देकर कहा कि जलवायु वित्त का लक्ष्य 2035 तक के लिए निर्धारित किया गया है, जो बहुत दूर की बात है। अनुमान बताते हैं कि हमें 2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी। 300 अरब अमेरिकी डॉलर विकासशील देशों की जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हैं। यह समानता के सिद्धांत के साथ अनुरूप नहीं है। इस दौरान राजनयिकों, नागरिक समाज के सदस्यों और पत्रकारों से भरे कक्ष में भारतीय वार्ताकार को जोरदार समर्थन मिला। नाइजीरिया ने भारत का समर्थन करते हुए कहा कि 300 अरब अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त पैकेज एक मजाक है। मलावी और बोलीविया ने भी भारत को समर्थन दिया। रैना ने कहा कि परिणाम विकसित देशों की अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की अनिच्छा को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और उन्हें अपने विकास की कीमत पर भी कम कार्बन उत्सर्जन वाले माध्यम अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्हें विकसित देशों द्वारा अपनाए गए कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे एकतरफा कदमों का भी सामना करना पड़ रहा है। रैना ने कहा कि प्रस्तावित परिणाम विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढलने की क्षमता को और अधिक प्रभावित करेगा तथा जलवायु लक्ष्य संबंधी उनकी महत्वाकांक्षाओं और विकास पर अत्यधिक असर डालेगा। भारत वर्तमान स्वरूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता। विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त पैकेज पिछली बार 2009 में तय किए गया था तब यह 100 अरब अमेरिकी डॉलर था। अब इसे बढ़ाकर 300 अरब डॉलर कर दिया गया है। समझौते पर वार्ता के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश विभिन्न स्रोतों – सार्वजनिक और निजी, द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय तथा वैकल्पिक स्रोतों से कुल 300 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष मुहैया कराने का लक्ष्य 2035 तक हासिल करेंगे। दस्तावेज में 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा है लेकिन इसमें सार्वजनिक और निजी सहित सभी से 2035 तक इस स्तर तक पहुंचने के लिए एक साथ काम करने का आह्वान किया गया है। इसमें केवल विकसित देशों पर ही जिम्मेदारी नहीं डाली गई है।

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