लंदन। दुनियाभर में अवसाद के मामले बढ़ने लगे हैं। इसको देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक नया हेडफोन बनाया है जो आपको अवसाद से उबारेगा।
अवसाद की समस्या का इलाज घर पर करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया हेडसेट विकसित किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इसमें लगे इलेक्ट्रोड से दिमाग को मिलने वाले झटके से इलाज संभव है। उनका कहना हैकि एक दिन में मात्र आधे घंटे इस डिवाइस का इस्तेमाल करने वाले अवसाद के मरीजों की स्थिति बेहतर हो सकती है। वैसे तो अवसाद की बीमारी दुनिया के अधिकांश देश में है। केवल ब्रिटेन में इस बीमारी ने छह वयस्कों में से एक को चपेट में ले रखा है। मौजूदा इलाज में एंटीडिप्रेसेंट और साइकोलॉजिकल थेरेपी दी जाती है लेकिन एक तिहाई से अधिक लोगों में अवसाद की बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती है। इस हेडफोन से अवसाद की बीमारी का इलाज हो सकता है या नहीं, इसपर लंदन के किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल ने काम किया। शोध में पता चला कि हेडफोन – फ्लो एफएल-100 का एक दिन में 30 मिनट तक इस्तेमाल करने से लोगों में अवसाद की बीमारी के ठीक होने की संभावना तीन गुना तक बढ़ जाती है। हेडसेट में लगा दो इलेक्ट्रोड लगा है। इससे मस्तिष्क के स्कैल्प में सीधे तौर पर कमजोर बिजली के झटके प्रदान किए जाते हैं। यह अवसाद से पीड़ित लोगों के दिमाग में उस हिस्से पर असर डालता है जो कम गतिविधि का कारण बनता है। इस शोध में कुल 174 मरीजों ने हिस्सा लिया। प्रतिभागियों ने हेडसेट का इस्तेमाल घर पर किया। वीडियो लिंक पर वैज्ञानिकों ने इस दौरान उनकी निगरानी की। मरीजों को एक सप्ताह में आधे घंटे वाले पांच सेशन कराए गए। शोध कुल सात माह तक चला। शुरुआत के तीन सप्ताह में केवल तीन सत्र कराए गए। शोध के विश्लेषण में सकारात्मक नतीजे सामने आए। मरीजों में अवसाद की कमी देखी गई। शोध के नतीजे जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुए। शोध के प्रमुख लेखक प्रोफेसर सिंथिया फू ने कहा, ‘अवसाद की बीमारी की चपेट में दुनिया भर के 28 करोड़ लोग हैं। इस बीमारी का मौजूदा इलाज हो रहा है, लेकिन कई मरीजों को इसका साइड इफेक्ट भी झेलना पड़ता है, जो इस हेडसेट से नहीं होगा। शोध के नतीजे पर एलन यंग ने कहा, ‘इस शोध में हेडसेट से अवसाद का इलाज कारगर साबित हो रहा है।’ इस साल की शुरुआत में आए लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 19.73 करोड़ लोग विभिन्न तरह की मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हैं। इनमें 4.57 करोड़ लोग अवसाद और 4.49 करोड़ लोग तनाव की चपेट में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक तनाव और अवसाद से परेशान रहने वाले ज्यादातर लोग वे शहरी युवा होते हैं जो कॉरपोरेट जगत में काम करते हैं।