नई दिल्ली। केंद्र सरकार खिलाड़ियों को अब डिजिटल सर्टिफिकेट देगी। इससे खिलाड़ियों के प्रदर्शन और प्रतिभागिता को लेकर पारदर्शिता बनी रहेगी। सर्टिफिकेट में खिलाड़ियों की प्रतिस्पर्धाओं में भागीदारी की तारीफ रहेगी और यह उनकी उपलब्धियों का सबूत भी होगा। यह ऐलान खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने की।
अनुराग ठाकुर ने खिलाड़ियों और राष्ट्रीय खेल महासंघों के लिए चीजें आसान करने की अपनी योजना का ऐलान पिछले साल 29 अगस्त को किया था। उस समय एनएसएफ पोर्टल भी शुरू किया गया था। ठाकुर ने गुरुवार को ‘एक्स’ पर लिखा, खिलाड़ी हमारे खेल ढांचे की धुरी हैं और इसे ध्यान में रखकर खेल मंत्रालय ने उन्हें डिजिटल सर्टिफिकेट देने का अहम फैसला किया है। ‘खिलाड़ी सर्वोपरि नीति’ के अनुरूप राष्ट्रीय खेल महासंघों को डिजिलॉकर के जरिये खिलाड़ियों को सर्टिफिकेट देने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला एनएसएफ के खेल प्रशासन में पारदर्शिता और कुशलता को बढ़ावा देने और खिलाड़ियों के दस्तावेजों की सुरक्षा, पहुंच और सत्यता सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। इसीलिए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय की एक पहल, डिजिलॉकर के माध्यम से एथलीटों को प्रमाण पत्र जारी करने की वकालत की गई है। डिजिटल प्रमाणपत्र में एथलीटों की प्रतियोगिताओं में भागीदारी की तारीखें होंगी। उन्होंने कहा कि इस साल एक जून से खेल महासंघों द्वारा डिजिलॉकर के जरिये जारी किए गए सर्टिफिकेट ही वैध होंगे। अन्य किसी कागजी प्रमाण पत्र को सरकारी और अन्य फायदों के लिए मान्य नहीं माना जाएगा। हमने महासंघों को सुझाव दे दिया है कि उनकी मान्यता प्राप्त इकाइयां भी अगले साल एक जनवरी से डिजिलॉकर के जरिये सर्टिफिकेट देना शुरू करें। ठाकुर ने कहा कि इससे सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया सुचारु होगी और प्रशासनिक बोझ कम होगा। इससे देश भर में हमारे खिलाड़ियों के लिए जीवनयापन में आसानी होगी।
कई फायदे होंगे : डिजिलॉकर के माध्यम से खेल प्रमाणपत्र जारी करने के फायदे गिनाते हुए ठाकुर ने कहा कि यह प्रमाणपत्रों तक पहुंच और साझा करना आसान बना देगा, भौतिक प्रतियों की आवश्यकता को समाप्त कर देगा, दस्तावेजों को संग्रहीत करने और सत्यापित करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करेगा और उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि ये प्रमाणपत्र एथलीटों की उनके संबंधित खेलों में प्रतिबद्धता, प्रयास और उपलब्धियों का प्रमाण हैं। ये अब भी पुराने और अकुशल, पारंपरिक तरीकों से प्रधान किए जाते हैं।