लखनऊ। राजेंद्र तिवारी
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस के लिए चुनौती बने साढ़े पांच लाख के इनामी कुख्यात डकैत गौरी यादव को एसटीएफ ने शनिवार को मुठभेड़ में ढेर कर दिया। गौरी यादव का सफाया करके एसटीएफ ने डकैतों का आखिरी किला भी ध्वस्त कर दिया। छह लाख के इनामी बबुली कोल को मार गिराने के बाद गौरी यादव डकैतों के गैंग की कमान संभाले हुए था।
एसटीएफ को शुक्रवार शाम को जानकारी मिली कि डकैत गौरी यादव अपने गिरोह के साथ माडौ बांध के पास मौजूद है। एडीजी एसटीएफ की अगुवाई में दो टीमों ने देर रात घेराबंदी शुरू की। शनिवार सुबह करीब तीन बजे टीम ने चारों ओर से घेरा डाल दिया। आत्मसमर्पण के लिए ललकारने पर डकैतों ने फायरिंग शुरू कर दी। दोनों तरफ से सैकड़ों राउंड फायरिंग हुई। आधे घंटे बाद डकैतों की तरफ से फायर बंद हो गए। मौके पर एक डकैत का शव पाया गया, जिसकी पहचान कुख्यात गौरी यादव के रूप में हुई। गिरोह के बाकी डकैत भागने में कामयाब हो गए। एनकाउंटर की सूचना पर एसपी धवल जायसवाल, एएसपी शैलेन्द्र कुमार राय, सीओ सिटी शीतला प्रसाद पांडेय कई थानों के फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे। एसडीएम मानिकपुर प्रमेश श्रीवास्तव की मौजूदगी में शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। बताया जा रहा है कि यूपी एसटीएफ ने बहिल पुरवा थाना क्षेत्र के माडौ बांध के पास जंगल में शनिवार तड़के उसे घेर लिया था। करीब आधे घंटे दोनों तरफ से जबरदस्त फायरिंग हुई, जिसमें गौरी यादव मारा गया और उसके गैंग के डकैत भाग निकले। मुठभेड़ स्थल से एके-47 समेत दो अत्याधुनिक राइफलें, बंदूक, तमंचा व भारी मात्रा में कारतूस बरामद किए गए हैं। गौरी पर छह हत्या समेत 50 मुकदमे दर्ज थे। मुठभेड़ में एडीजी एसटीएफ अमिताभ यश भी जंगल में उतरे थे। गौरी यादव भी बबुली कोल की तरह यूपी के अलावा एमपी में भी मोस्ट वांटेड था। बबुली पर दोनों राज्यों में 70 मुकदमे दर्ज थे तो गौरी पर भी दोनों राज्यों में 50 मुकदमे दर्ज हैं। दोनों पर इनामी राशि में महज 50 हजार का अंतर था। चित्रकूट जिले की सीमा से जुड़े यूपी-एमपी बार्डर पर सैकड़ों किलोमीटर लंबे-चौड़े पाठा के घनघोर जंगलों में डकैतों का साम्राज्य खत्म करने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी। पुलिस के कई जवानों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। हाल के वर्षों में बबुली सबसे कुख्यात रहा। उसने पैसे के लिए कुख्यात ददुआ का पिट्ठू बनकर जंगल की राह पकड़ी थी। ददुआ के मारे जाने के बाद वह ठोकिया, रागिया और फिर बलखड़िया के साथ रहा। बलखड़िया के साथ आने तक वह शार्प शूटर बन चुका था। बलखड़िया की मौत के बाद उसने गैंग की कमान संभाली तो फिर आतंक का सिलसिला बढ़ता ही गया। बबुली की चूना पत्थर की तस्करी और वसूली से हर माह लाखों की कमाई थी।